‘पुत्त जट्टां दे’ फिल्म में देव थरीकियांवाले का लिखा हुआ शीर्षक गीत सुरिंदर शिंदे ने रिकार्ड करवाना था। शिंदा अपने साथ दिल्ली में चमकीले और कुलदीप पारस को भी बैकिंग करने के लिए ले गया। उस गीत में चमकीले, कुलदीप पारस और पाली देतवालिये ने कोरस गाया था। उसके उपरांत ‘नैणां दे वणजारे’ कैसिट में शिंदे ने ‘मिरज़ा’ गाना था। उसका कोरस बोलने के लिए भी चमकीला साथ चला गया था। रिकार्डिंग पर शिंदे के साथ जाने के कारण चमकीले ने संगीतकार चरनजीत आहूजे के साथ अपनी निकटता पैदा कर ली थी।
एक दिन प्रोग्रोम पर जाते समय केसर टिक्की, शिंदे से कहने लगा, “उस्ताद जी, अपना चमकीला भी बहुत बढि़या गीत लिखता है। एक-आधा इसका गीत भी रिकार्ड करवा दो।“
“क्या?...चमकीले तू गीत लिख लेता है? सवेरे दिखाना अपना कोई गीत।“
अगले दिन चमकीला ‘मैं डिग्गी तिलक के, छड़े जेठ ने चक्की’ गीत शिंदे के पास ले गया था। गीत सुनकर शिंदा बोला, “यह तूने खुद लिखा है? पतंदर, गीत के बोल बहुत तीखे हैं।“
“आप ज़रा रिकार्ड करवाओ उस्ताद जी, गीत चलेगा देखना।“ चमकीला गर्व के साथ बोला था।
शिंदे ने सुरिंदर सोनिया के साथ गीत रिकार्ड करवा दिया था। वैसे चमकीले का यही गीत करतार रमले और सुखवंत सुक्खी ने भी रिकार्ड करवाने के लिए तैयार किया हुआ था। गीत सचमुच ही चल गया था। उसके बाद शिंदे ने तीन और गीत ‘दुध वांग तू फट गई, बिना जाग तों पतलिये नारे’, ‘पतली पतंग कुड़ी फुल्ल वरगी, कढ़दी दरां विच फुलकारी’ और ‘दे गया नीं डुब्ब जाणी दा, जेठ गुग्गल दी धूणी’ चमकीले से लेकर सुरिंदर सोनिया के साथ रिकार्ड करवाये थे। इन गीतों के साथ चमकीले का नाम एक गीतकार के तौर पर स्थापित हो गया था। फिर उसके गीत प्यारा सिंह पंछी, नरिंदर बीबा और कुछ अन्य गायकों ने भी रिकार्ड करवा दिए थे।
शिंदे की रिकार्डिंगं के समय चमकीले ने चरनजीत आहूजा को अपने गीत सुनाये हुए थे। चरनजीत आहूजा को चमकीले की गायकी और गीतकारी पसंद आ गई थी। चरनजीत आहूजा ने चमकीले से कहा था, “जब अगली बार आएगा तो अपने और गीत साथ लेकर आना। तुझसे सुनेंगे।“
सुरिंदर शिंदे ने ‘तीआं लोंगोवाल दीआं’ वाला गीत टेप पर रिकार्ड करवाना था। चमकीला बस में दिल्ली की ओर शिंदे के साथ जा रहा था। अम्बाला के पास जाकर शिंदे ने याद करवाया था, “चमकीले, अपने गीतों वाली काॅपी साथ लेकर आया है न?“
“ओ तेरी! वो तो भूल ही गया जी। रिकार्डिंग तो कल को है। मैं वापस जाकर ले आता हूँ और आपसे दिल्ली में मिलता हूँ।“ वहाँ बस से उतरकर चमकीला वापस आ गया और डायरी लेकर दिल्ली की ओर चल दिया था।
शिंदे की रिकार्डिंग के बाद चमकीले ने अपने गीत सुनाये तो चरनजीत आहूजा ने चमकीले से कहा था, “तुझे ग्रामीण संस्कृति का ज्ञान है और तेरी शब्दों पर पकड़ है। तू तैयारी करके आना, तेरी रिकार्डिंग के बारे में मैं कंपनी से सिफारिश करूँगा।“
इस प्रकार, रिकार्डिंग के सपने का बीज चमकीले के मन के अंदर अंकुरित होना शुरू हो गया था, पर न तो वह स्वतंत्र रूप में गाता था और न ही उसके पास कोई सहायक गायिका थी। इसलिए रिकार्डिंग वाली बात को चमकीले ने गर्मजोशी से तो न लिया, पर इस ख्याल को उसने अपने से अलग करके भी नहीं फेंका था। एक दिन लाउड स्पीकरों में अपने गीत सुनने की लालसा और चिंगारी उसके अंदर प्रज्जवलित होकर भड़कने लग पड़ी थी।
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