Thursday, June 14, 2018

1 कांड -किलकारियाँ

शहीद (उपन्यास) -बलराज सिंह सिद्धू (अनुवाद -सुभाष नीरव)


पंजाब का एक प्रसिद्ध ज़िला है - लुधियाना। इतिहास के अनुसार इसका पहला नाम ‘मीर होता’ हुआ करता था। लोधी वंश ने दिल्ली से भारत पर 1451-1526 ई. तक राज किया था। लोधियों के एक शासक सिकंदर लोधी (1489-1517 ई.) के एक सिपहसालार निहंद खाँ ने मीर होता (लुधियाना) को विकसित करके इसका नाम लोधीयाना रख दिया था। यानी लोधियों का ठिकाना। आहिस्ता-आहिस्ता लोधीयाना से बिगड़कर लुधियाना बना था। यह शहर पंजाब प्रांत के एक औद्योगिक शहर के तौर पर प्रसिद्ध है। लेकिन उद्योग की अपेक्षा यह पंजाबी कलाकारों की राजधानी और गायकों का गढ़ माना जाता है।

इस गायकों की राजधानी लुधियाना ने कई राजा-रंक फ़नकारों को पनाह दी है। आज मैं आपको उस हरफनमौला कलाकार अमर सिंह चमकीला की कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसने इस राजधानी में बड़े कम समय में अपनी बादशाहत के झंडे गाड़े। वह पंजाबी गवइयों की दुनिया में बादशाह बाबर की तरह आया और छा गया। हुक्मरान हिमायूँ की तरह बहुत कम समय राजगद्दी पर बैठ सका। लेकिन जितने समय तक उसने पंजाबी गायकी के क्षेत्र में शासन किया, वह आलमगीर औरंगजेब की तरह सामने आए हर गायक को अपनी कला की तेज़ तलवार से झटकाता चला गया। शहँशाह अकबर के राज की तरह आज भी उसकी मिसालें दी जाती हैं। वह महाराजा रणजीत सिंह की तरह खुले दिल वाला दानी पुरुष था।
जब वह अपनी जवानी के शिखर छू रहा था तो अपने साथ एक तूफान लेकर आया...एक आँधी...एक बाढ़...एक जलजला...एक ज्वारभाटा...एक भूचाल...एक प्रलय...एक कयामत...एक चक्रवात। पंजाबी गायकी के उस शहँशाह अमर सिंह चमकीले का जन्म इसी लुधियाना शहर के दायीं ओर नहर के किनारे बसे एक अल्पज्ञात गाँव दुग्गरी में हुआ था। आइये, उसके ज़िन्दगीनामे को प्रारंभ से शुरू करते हैं।

दुग्गरी गाँव में 21 जुलाई 1960, शुक्रवार के दिन एक दलित रविदासिये यानी चमार परिवार के सरदार हरी सिंह संदीले और करतार कौर के घर एक बालक ने जन्म लिया था। आर्थिक तंगियों के कारण काफ़ी समय से हरी सिंह के घर का माहौल नाखुशगवार ही रहता था। हरी सिंह के पहले ही दो बेटियाँ थी - एक स्वर्ण कौर और दूसरी चरन कौर। जब उसकी पत्नी करतार कौर तीसरी बार गर्भवती हुई तो हरी सिंह के मन में यही संशय था कि कहीं फिर कन्या न जन्म ले ले। कन्या जन्मने का उस निर्धन मज़दूर के लिए अर्थ था - और अधिक आर्थिक संकटों के थपेड़ों को झेलना। वह तो पहले ही अपना परिवार बूढ़े बैल की तरह खींच रहा था। लेकिन जब उसके कानों में दाई के मुख से बेटा पैदा होने की ख़बर पड़ी तो उसका चेहरा खुशी में खिल उठा था। उसको लगा था मानो यकायक वह धनवान बन गया हो। खुशी में झूमते हरी सिंह ने उसी पल निश्चय कर लिया था कि वह अपने नवजन्मे पुत्र का नाम धनीराम ही रखेगा। इस नाम के स्वाभाविक ही मौके पर सूझ जाने का एक कारण यह भी था कि जनेपे के कुछ दिन पूर्व उसने किसी ज्योतिषी को अपना हाथ दिखाकर अपना भविष्य पूछा था।

ज्योतिषी ने कुंडली लाकर बताया था, “जजमान, यह तेरी होने वाली औलाद बहुत भाग्य वाली... किस्मत की धनी होगी और पूरी दुनिया में तेरा और तेरे खानदान का नाम रौशन करेगी। इसी के प्रताप से तुम्हारे पास इतना धन होगा कि संभले नहीं संभाला जा सकेगा।"

बस, ‘किस्मत के धनी’ शब्द पर उसी समय हरी सिंह की सुई अटक गई थी। यही कारण था कि उसने बच्चे का नाम धनी राम रख दिया था।

परलोक सिधार चुके दादा किशन सिंह और दादी काको के पोते धनी राम की किलकारियाँ घर की खामोशी को तोड़ती हुई चारदीवारी में गूंजती तो हरी सिंह और उसकी पत्नी करतार कौर को यूँ लगता जैसे संगीत की वर्षा हो रही हो। वे अपने बालक को घरेलू नाम ‘धनिया’ के साथ पुकारते थे।


वक्त कभी मदमस्त हाथी की चाल चलता रहा था और कभी जंगली हिरनी की तरह कुलांचे भरता रहा था। यूँ धनिया भी उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ता जवान होने लगा था।

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