Saturday, June 2, 2018

8 कांड -बंदा और परिन्दा

शहीद (उपन्यास) -बलराज सिंह सिद्धू (अनुवाद -सुभाष नीरव)

हरचरन ग्रेवाल, कलाकारों की मार्किट में अपना अच्छा-खासा नाम बना चुका था। या यह कह लो - पैर धरती में गड़ा चुका था। ‘मित्तरां दे ट्यूवल ते, लीड़े धोण दे बहाने आ जा...’, ‘अद्धी रात तक मैं पढ़दी, तैनूं चिट्ठियाँ लिखण दी मारी...’, ‘मित्तरा मैं बोतल नाभे दी...’ उसके अनेक गीत मकबूल हो चुके थे। गायकी और कंठ में वह पूरा जट्ट होता था, पर पैसे के मामले में पूरा बनिया बन जाता था। किसी को मरी जूँ देकर भी राजी नहीं था। यहाँ तक की अपने साज़िन्दों को भी पूरे पैसे नहीं देता था। संगीत और सहायक गायिका, प्रेमिका सुरिंदर सीमा(जो बाद में उसकी पत्नी भी बनी) के बाद ग्रेवाल का समय शराब और शिकार में गुज़रता था। 

ग्रेवाल को खासे प्रोग्राम बुक होते थे और चमकीला उसके साथ बाजा बजाने पर जाया करता था। चमकीले को वह चालीस रुपये दिहाड़ी के देता था। जब कभी राजस्थान की ओर हरचरन ग्रेवाल के प्रोग्राम बुक होते तो प्रोग्रामों के बाद वह अपने साजिन्दों को लेकर शिकार खेलने निकल जाता था। रायफल के बैरल के ऊपर फिट दूरबीन के सहारे ग्रेवाल का निशाना बिल्कुल सही जाकर लगता था। तीतर का मीट खाने का वह पूरा शौकीन था।

उस दिन भी बीकानेर के पास किसी गाँव में हरचरन ग्रेवाल का अखाड़ा लगा था। वहाँ उम्मीद से अधिक पैसे इकट्ठे हो गए थे। पर फिर भी ग्रेवाल ने पेटी बजाने साथ आए चमकीले को उस दिन की दिहाड़ी में से पाँच रुपये कम दिए थे। चमकीले ने बिना कोई आनाकानी किए चालीस रुपये की बजाय पैंतीस रुपये ही पकड़कर जेब में डाल लिए थे।

साजिन्दों को ग्रेवाल अक्सर मजाक में ‘तीतर’ कहकर बुलाया करता था। बिना बात के किसी भी साजिन्दे का अपमान करना वह अपना हक़ समझता था। प्रोग्राम के बाद जब घर वाले रोटी पूछने के लिए आए तो उन्होंने पूछा था, “कितने बंदों की रोटी लेकर आएँ?“

इसका ग्रेवाल ने कुछ इस तरह जवाब दिया था, “मैं, सीमा और ड्राइवर हम तीन बंदे हैं और कुक्की घड़े वाला, चमकीला बाजे वाला और लक्खा ढोलकी वाला तीन साजिन्दे।“

साजिन्दों को वह बंदे ही नहीं समझता था। उसकी शोहरत और हेकड़ी उसकी हरकतों में से बोला करती थी। दारू पीकर ग्रेवाल साजिन्दों पर रौब गालिब करने के लिए उन्हें रेतीले टीलों और झाड़ों की तरफ ले चला था।

अभी वे ग्रेवाल की किराये की अम्बैसडर कार में कुछ दूर ही गए थे कि ग्रेवाल को एक तीतरों की कतार दिख गई। ग्रेवाल में कार में बैठे बैठे ही दूरबीन से देखते हुए रायफल का निशाना लगाया और एक जानवर उल्टा कर दिया।

“जा कुक्की, उठा ला। आज रोटी स्वाद से खाएँगे।“

घड़ा बजाने वाला कलविंदर कुक्की मरा हुआ तीतर उठाने चला गया था। ग्रेवाल, चमकीला और कार का ड्राइवर नेका गाड़ी में से उतरकर बाहर खड़े हो गए थे। ग्रेवाल ने कार के बोनट पर दारू की बोतल और गिलास रखकर अपने लिए मोटा-सा पैग बनाया और एक ही साँस में गटागट खींच गया। आधी बोतल तो उसने रास्ते में आते हुए ही खाली कर दी थी। नशे की लोर में ग्रेवाल के पैर डगमगाने लगे थे और ज़बान थिरकने लगी थी।

कुक्की मरे हुए दो तीतर उठाकर ग्रेवाल के करीब आया, “उस्ताद जी, ये दो गिरे पड़े थे।“

“देखा, इसे कहते हैं, एक तीर से दो निशाने लगाना। इन चूजों में से तो मुश्किल से पावभर मीट भी नहीं निकलेगा। फेंक पीछे गाड़ी में। मैं दो-चार और मारता हूँ।“ ग्रेवाल नशे के सुरूर में दुपहर की धूप की तरह खिला हुआ था।

हरचरन ग्रेवाल ने रायफल भरकर निशाना लगाने के लिए एक आँख मूंदी और दूसरी दूरबीन में गाड़ते हुए उसने घोड़ा दबा दिया। इस बार तीतर कोई नहीं मरा था, उसका फायर खाली गया था।

“उस्ताद जी, इस बार तो गोली की आवाज़ सुनकर पहले ही पंछी उड़ गए जी।“ चमकीला बोल पड़ा था।

यह सुनकर ग्रेवाल को खीझ चढ़ गई थी। उसने एक और तगड़ा-सा पैग पिया और शेखी मारने लग पड़ा था, “ओ चमकीले, देखना अब जट्ट बिना निशाना लगाकर दिखाएगा तुझको। देखते रहना।“

दूर ऊँचे टीले पर बैठे पंछियों के घने झुंड की ओर रायफल तानकर ग्रेवाल ने उल्टी दिशा में घुमाया और घोड़ा दबा दिया था। एक तीतर हवा में उछलकर गिर पड़ा था और बाकी गोली की आवाज़ से उड़ गए थे।

ग्रेवाल बिना देखे निशाना लगाने के कारण मचल उठा था, “जा कुक्की, तू उठाये चल, मैं मार मार फेंके जाऊँगा।“

ग्रेवाल ने फिर बिना देखे गोली चलायी थी। कुक्की दौड़कर टीले पर जा चढ़ा था। 

“उस्ताद जी, एक भी नहीं मरा इस बार तो।“ टीले पर से कुक्की ने हाथ खड़े करके दिखाये थे।

ग्रेवाल और आवेश में आ गया था, “ले फिर, अब देखना।“

ग्रेवाल ने बोतल मुँह से लगाकर एक और घूंट भरा और रायफल दुबारा लोड करके विपरीत दिशा में देखते हुए निशाना लगाने की तैयारी करने लगा। चमकीला, ग्रेवाल की रायफल का मुँह कुक्की की तरफ देखकर घबरा गया था। दौड़कर चमकीले ने रायफल की नली को झपटकर आसमान की ओर जैसे ही किया तो रायफल में से एक गोली निकलकर आकाश की ओर चली गई थी। 

“ग्रेवाल साहब, आज आप इतने नशे में हो कि आपको बंदे भी परिन्दे दिखाई देने लगे हैं। होश में आओ। अगर गोली कुक्की के लग जाती तो फांसी के फंदे पर मरे हुए तीतर की तरह आप लटकते होते। पुलिस आपको बंदे से परिन्दा एक मिनट में बना देती। शोहरत के नशे में इतने अँधे नहीं हुआ करते कि बंदे और परिन्दे के बीच का अंतर ही भूल जाएँ।“

चमकीले की बात सुनकर ग्रेवाल की शराब एकदम उतर गई थी। उसने पाँच रुपये का नोट निकालकर चमकीले को दिया था और माथे का पसीना पोंछते हुए गाड़ी में बैठ गया था।

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