शहीद (उपन्यास) -बलराज सिंह सिद्धू (अनुवाद -सुभाष नीरव)
धनीराम ने पंजाबी गायकी के क्षेत्र में आने के लिए पूरी कमर कस ली थी। वह लुधियाना के चर्चित गायकों के अखाड़े पर जाकर सुनता और कलाकारों से निरंतर मिलता रहता था। कलाकारों की मंडी में कुछ समय खाक छानने के बाद उसको इल्म हो गया था कि वह सीधा गायकी के अखाड़े में नहीं कूद सकता। अपनी आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण दूसरे कलाकारों की तरह पहले उसको किसी स्थापित गायक का सहारा लेना ज़रूरी था। उसे किसी चर्चित गायक की मंडली में शामिल होकर अपनी पहचान और संपर्क बनाने थे। पंजाबी गायकी के बड़े-बड़े नाम उसको पास नहीं फटकने दे रहे थे। आखि़र, लंबी सोच-विचार के बाद उसकी सोच सुरिंदर शिंदे पर आकर अटक गई थी। शिंदा न ही उस वक्त बड़ा नाम था और न ही अस्थापित। महज पाली देतवालिये का लिखा गीत - “मैं की करां करतारो गड्डी, छे सलंडर दी“ और देव थरीकियाँ वाले का लिखा- “उच्चड़ा बुर्ज लाहौर दो...“ ही शिंदे का ताज़ा ताज़ा चला था।
शिंदे ने अपनी थोड़ी-बहुत मार्किट बना ली थी। इसलिए शिंदा ही धनी राम को सबसे उपयुक्त प्रतीत हुआ था। धनी राम ने कलाकारों के जरिये मालूम कर लिया था कि शिंदे के खेमे में उसको शिंदे का ढोलक मास्टर केसर सिंह टिक्की ही प्रवेश दिला सकता था। धनी राम ने टिक्की के साथ संपर्क किया। टिक्की ने उसको एक प्रोग्राम पर बुला लिया था।
26 जनवरी 1977 को गिल्ल चैक और विश्वकर्मा चैक के बीच स्टेज बना हुआ था। अन्य अनेक कलाकारों की तरह सुरिंदर शिंदे और सुरिंदर सोनिया ने अपना प्रोग्राम पेश किया था। उस समय केसर सिंह टिक्की उनके साथ ढोलक पर था।
प्रोग्राम के बाद धनी राम, केसर सिंह टिक्की से जाकर मिला था, “टिक्की यार, मुझे शिंदे का शागिर्द बनवा दे।“
टिक्की ने कुछ सोचकर जवाब दिया, “ठीक है। तू कल नौ बजे बस अड्डे के सामने आ जाना। शिंदा भी वहीं होगा। हम बात कर लेंगे।“
धनी राम अगले दिन नौ बजने से पहले ही पहुँच गया था। लगभग दस बजे सुरिंदर शिंदा अपने नीले रंग के साइकिल पर वहाँ पहुँचा था तो टिक्की ने धनी राम का परिचय करवाते हुए उसका शागिर्द बनने की इच्छा शिंदे को बताई थी। शिंदा उन्हें प्रिथी की चायवाली दुकान पर लेकर बैठ गया, “हाँ भाई छोटे, गीत सुना कोई?“
धनी राम जानता था कि शिंदा गीतकार देव थरीकियां वाले का साढू था और जल्दी उसके गीत रिकार्ड करवा रहा था। धनी राम ने जानबूझकर देव थरीकियां वाले का लिखा गीत सुनाना आरंभ कर दिया, “इक्क मुठ हो जाओ छड़िओ, ऐदां चलणा नहीं आपणा गुज़ारा। तीवियां ने होके कट्ठियां, कल ढाह लिया छड़ा करतारा।“
सुरिंदर शिंदा उसकी गायकी पर मंत्रमुग्ध हो उठा था। दरअसल उस समय शिंदा खुद भी कोई अधिक मकबूल नहीं था। मगर शिंदा यह बात जान गया था कि धनी राम बढ़िया गाता था और थोड़ी-सी मेहनत करके काफ़ी आगे तक जा सकता था। शिंदा नहीं चाहता था कि धनी राम उसको छोड़कर किसी दूसरे गायक का शागिर्द बने। यह बात भी शिंदे को पता थी कि यदि उसने उस वक्त धनी राम को अपना शागिर्द नहीं बनाया तो वह अवश्य किसी दूसरे के पास चला जाएगा। शिंदे ने धनी राम को अपने जाल में लेने के लिए अपनी बाहों में भर लिया था, “शागिर्द नहीं, तू तो मेरा भाई है। यहाँ आ जाया कर। मैं तो खुद अभी भंवरा साहब से सीखता हूँ। तू भी उनसे सीखते रहना। मैं भी सीखता रहूँगा।“
धनी राम ने लड्डू, पगड़ी, नारियल और ग्यारह रुपये का नज़राना देकर सुरिंदर शिंदे के साथ उस्तादी-शागिर्दी का रिश्ता कायम कर लिया था। शिंदे ने एक रुपया रखकर बाकी के दस रुपये धनी राम को लौटा दिए थे। फिर, इसी तरह ही धनी राम ने जसवंत सिंह भंवरे को पगड़ी देकर दादा उस्ताद धारण करने की रस्म अदा की थी। धनी राम जब भी अवसर मिलता जसवंत भंवरे और शिंदे के पिता बचना राम से उनके नीम वाले चैक पर बने घर पर संगीत सीखने चला जाता था।
धनी राम नित्य बिना नागा नौ बजे अपने गाँव दुग्गरी से साइकिल उठाकर चाय की दुकान पर आ जाता था। शिंदा उसको मिलने आए मेहमानों की खातिरदारी में ही लगाये रखता था। शिंदे के पास भी अधिक प्रोग्राम नहीं होते थे। केसर टिक्की, कश्मीरी या प्रिथी घर से रोटी लेकर आते। दोपहर को प्रिथी चाय वाले की दुकान पर ये सब बैठकर एक साथ रोटी खाते और हँसी-मजाक करते रहते।
उस वक्त आठ सौ से लेकर पंद्रह-सोलह सौ रुपये के बीच प्रोग्राम बुक होता था। जब कभी शिंदे के लिए प्रोग्राम बुक होता तो धनी राम सहायता के लिए संग चला जाता था। कभी वह कोई धार्मिक गीत गा देता या चलते हुए कार्यक्रम में एक-आधा गीत गा देता ताकि शिंदे को कुछ देर आराम मिल सके। कभी हरमोनियम बजाता और फिर ऐसा समय भी आया कि शिंदा गा रहा होता और धनी राम तूम्बी बजा रहा होता। धनी राम तूम्बी बजाकर माइक से पीछे हट जाता और शिंदा अपना अंतरा गाने के लिए माइक पर आ जाता। शिंदा जानता था कि धनी राम उससे ज्यादा अच्छी तूम्बी बजाता था। इस प्रकार, शिंदे के साथ स्टेज पर सहायक गायक के तौर पर धनी राम अपने पैर जमाता चला गया और लोगों की नब्ज़ पकड़ता चला गया। इस तरह शिंदे के माध्यम से गायकी के क्षेत्र में सेंध लगाकर धनी राम ने अगली मंज़िल की ओर पैर रखने शुरू कर दिए थे।
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