शहीद (उपन्यास) -बलराज सिंह सिद्धू (अनुवाद -सुभाष नीरव)
केसर सिंह टिक्की और कुलविंदर कुक्की ने बस अड्डे के पास एक कमरा किराये पर लिया हुआ था। उस कमरे में एक बाजा, एक ढोलक और एक घड़ा पड़ा होता था। फुर्सत के समय धनी राम वहाँ जाकर रियाज़ किया करता था। टिक्की ढोलकी बजाता, कुक्की घड़ा और धनी राम हरमोनियम पकड़ कर गीत गाता रहता था। कभी कभी धनी राम उनके पास ही अंधेरा हो जाने पर सो जाया करता था। ऐसे ही, एक रात दारू पीकर धनी राम टिक्की के पास सो गया था। अगली सवेर टिक्की को प्रोग्राम पर जाना था।
केसर सिंह टिक्की अपनी ढोलक उठाकर चलने लगा था, “अच्छा धनी, मैं चला। शिंदे के साथ बुडै़ल पैंतालीस सेक्टर, चंडीगढ़ के पास रामलीला का प्रोग्राम बुक हुआ है। दस पंद्रह दिन लगेंगे वहाँ। तू पीछे से कमरे का ख्याल रखना।“
“दो हफ्ते मैं यहाँ क्या करूँगा? मेरा अकेले का तो यहाँ रियाज करने को भी दिल नहीं करेगा। घड़े वाला कुक्की भी अपने गाँव गया हुआ है। मैं भी तेरे साथ ही चलूँ?“ चारपाई पर लेटा धनी राम उठकर बैठ गया था।
“चल, हम शिंदे से पूछ लेंगे।“
दोनों बस अड्डे की ओर चल पड़े थे। दरअसल, टिक्की खुद ही धनी राम को साथ ले जाना चाहता था। उसके पीछे टिक्की का अपना स्वार्थ छिपा हुआ था। प्रोग्राम वाले पंद्रह सोलह दिन पूरी पार्टी के लोगों की सेवा टिक्की को करनी पड़ती। आमतौर पर खाने और पानी तक के सब काम टिक्की ही किया करता था। धनी राम अभी नया नया उनकी पार्टी में शामिल हुआ था। लुधियाना के गायकों की यह परंपरा रही थी कि जब कोई नया लड़का गायकी सीखने या साज़ बजाने के लिए स्टेज पर जाने लगता था तो वे उसको अपनी कला की ओर ध्यान कम ही देने देते थे। बल्कि हर समय अपनी चापलूसी करवाते रहते थे। ऐसे ही टिक्की ने अपनी जगह धनी राम को फिट कर लिया था। शिंदा या उसके साथ गई कोई गायिका जब किसी चीज़ की केसर टिक्की से फरमाइश करते तो टिक्की धनी राम को हुक्म दे देता था।
जब ये लुधियाना बस अड्डे पर पहुँचे तो वहाँ दूसरे साज़वालों के साथ स्टेज सेक्रेटरी सनमुख सिंह आज़ाद उर्फ़ मुक्खा पहले से ही टिक्की की प्रतीक्षा करते खड़े मिले। टिक्की ने धनी राम की संग चलने की बात कही तो मुक्खा हिचकिचाया था, “देख टिक्की, हमें रामलीला वालों ने पहले ही बहुत कम पैसे देने हैं। जितने कम बंदे ले जाएँ, उसमें ही हमें फायदा है। इसको पेमेंट हम नहीं दे सकते।“
“भापा जी, ये पेमेंट नहीं मांगता। यूँ ही अपने साथ चला जाएगा। हम लोगों को चाय-पानी पकड़ाएगा। और भी सौ काम होंगे, हम इससे करवाएंगे।“ टिक्की ने मुक्खा को बातों में फंसाया था।
“अच्छा, पर इसका किराया कौन देगा? शिंदा कितना लालची है, तुझे पता है। वह तो हमारे पैसों में से काट लेगा।“
“ओह हो! आप इसकी चिंता न करो। यह खुद किराया दे देगा या मैं दे दूँगा।“
“फिर ठीक है। आओ चढ़ें बस में।“
सभी बुड़ैल पहुँच गए थे। रात को रामलीला होती थी। लोगों को बांधे रखने के लिए बीच-बीच में सुरिंदर शिंदा और सोनिया एक आध गीत गा देते थे। धनी राम हरमोनियम या तूम्बी के साथ शिंदे का साथ देता था। धनी राम हर काम करने में फुर्तीला और मृदुभाषी होने के कारण प्रबंधकों की निगाह में चढ़ गया था। अगले दिन कपड़े प्रैस करता हुआ धनी राम कोई गाना गा रहा था। एक प्रबंधक ने वहाँ से गुज़रते हुए उसको सुन लिया। उस शाम प्रबंधक ने फरमाइश की थी, “तुम्हारे साथ ये जो लड़का हरमोनियम बजाता है, इसको भी रात में एक गाना गाने को टाइम दिया जाए।“
सारी गायन-पार्टी ने इस फरमाइश को मंजूर कर लिया था। शिंदे को भी कोई आपŸिा नहीं थी। लेकिन धनी राम स्टेज पर गाने से कन्नी कटाता था। जब सभी ने इस कारण पूछा तो वह बोला, “यार मेरा नाम एक गायक के रूप में कम और सेठों जैसा अधिक लगता है। जब तुम लोग धनिया कहते हो, उस समय तो बिल्कुल ही प्याज गल जाते हैं। अगला समझता है, सब्ज़ीमंडी से पकड़कर लाया गया है। गाने वालों के तो नाम जुदा ही होते हैं। तुम जब मेरा नाम स्टेज पर अनाउंस करोगे तो लोगों को यूँ लगेगा जैसे किसी लाला को बुलाया गया हो।“
“चल फिर तेरा नाम बदल देते हैं। कैसा नाम रखें तेरा?“
धनी राम ने अपनी इच्छा प्रकट की थी, “मेरा कोई अच्छा-सा नाम रखो, जैसे रंगीले जट्ट का है। ऐसा नाम जो मार्किट में चले भी। चमके भी और अमर भी हो जाए। वैसे मेरा नाम अमर सिंह संदीला है। मगर बहुत से लोगों को पता ही नहीं। मैं ‘संदीला’ इस्तेमाल नहीं करना चाहता। धांदरे वाला यह नाम इस्तेमाल करता है। लोगों को भ्रम पड़ेगा। कोई दूसरा सोचो, मेरा कोई रौबदाब वाला नाम।“
“अच्छा सोचते हैं तेरे नाम के बारे में। पर तू तैयार रहना गाने के लिए। नाम मैं खुद रख दूँगा तेरा कोई न कोई।“ मुक्खे ने तसल्ली दी थी।
शाम को नाटक चल रहा था। सनमुख सिंह आज़ाद, धनी राम के कान में कुछ कहने लगा, “ले भई काका, तू इस सीन के बाद तैयार रहना। जब मैं तुझे इशारा करूँ, तू स्टेज पर आकर अपना गीत गा देना।“
“पर मेरा नाम क्या रखा?“ धनी राम ने मुक्खे की बांह पकड़ ली थी।
“वो मैं तुझे नहीं बताऊँगा। तेरे नाम को तो दुनिया जानेगी।“ मुक्खा बांह छुड़ाकर स्टेज के पास चला गया था।
झांकी खत्म हुई तो सनमुख सिंह आज़ाद स्टेज पर जाकर दर्शकों और श्रोताओं से संबोधित हुआ, “प्यारे श्रोताओ, आज मैं आपके सामने एक बिल्कुल नया गायक पेश करने जा रहा हूँ। मैं आशा करता हूँ कि आप उसे बड़े प्रेमपूर्वक सुनोगो। वह बहुत ही सुरीला गायक है और उसका नाम है - अमर सिंह चमकीला !“
धनी राम स्टेज पर गया और उसने ‘सुच्चा सूरमा’ गीत गाना शुरू कर दिया। सभी मंत्रमुग्ध होकर उसे सुनते रहे थे। जैसे ही उसने गीत खत्म किया तो लोगों में से ‘एक और’, ‘एक और’ की फरमाइश होने लगी थी। धनी राम ने ‘जोगी टिल्लियो आ गया’ एक गीत और सुना दिया था।
उस रात सभी धनी राम को धनिया की बजाय अमर सिंह चमकीला कहकर छेड़ते रहे थे। अगले दिन जब धनी राम गली में से होकर जा रहा था तो वहाँ से दो-तीन लड़कियाँ उसकी तरफ देखकर हँसती हुई गुज़री थीं। उनमें से एक लड़की बोली थी, “री, देख तो, ये जा रहा है चमकीला जिसने रात गीत गाया था।“
उस लड़की के मुख से निकला ‘चमकीला’ शब्द धनी राम के कानों में शहद घोल गया था। एक पल के लिए तो वह खुद भी भूल गया था कि उसका नाम धनी राम था। उस दिन के बाद उसने सचमुच ही अपने नाम धनी राम को भुलाकर अपने संग अमर सिंह चमकीला जोड़ लेने का फैसला कर लिया था। तब से धनी राम ने अपने गीतों में ‘चमकीला’ उपनाम का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया था।
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