Wednesday, June 6, 2018

2 कांड -पहला कदम


शहीद (उपन्यास) -बलराज सिंह सिद्धू (अनुवाद -सुभाष नीरव)

दुग्गरी, धूरी लुधियाना रेलवे लाइन और गिल्लों वाली नहर के मध्य बसा हुआ गाँव था। कहते हैं कि कभी इस गाँव में केवल दो घर ही थे। एक घरवाले गाँव शरींह से आए थे और दूसरे गिल गाँव से। दो घरों के कारण यह स्थान ‘दो-घरी’ं कहलाता था। आज भी यहाँ मौजूद शरींह(शिरीष का पेड़) और गिल की पत्तियाँ इस बात की गवाही भरती हैं। कालांतर में ‘दो घरीं’ से बिगड़कर ‘दुग्गरी’ बन गया था इसका नाम। फिर धीरे-धीरे फैलता, विकसित होता यह गाँव आज एक तरह से लुधियाना का एक अंग ही बन गया है और कस्बे का रूप धारण कर चुका है।

धनी राम को गाँव के सरकारी गुजरखान प्राइमरी स्कूल में जाते कुछ समय हो गया था। स्कूली रिकार्ड में तो हालांकि उसका नाम अमर सिंह संदीला दर्ज़ था। परंतु सभी उसको उसके घरेलू नाम ‘धनिया’ से पुकारते थे। स्कूल में दाखि़ला दिलाते समय मास्टरों ने उसके पिता से उसका नाम पूछा था तो हरी सिंह ने ‘धनिया’ बताया था। मास्टर महिंदर सिंह के यह कहने पर कि यह कोई नाम नहीं होता तो हरी सिंह ने कहा था, “फिर जो होता है, आप खुद ही लिख लो।“ 

उस समय कहीं दूर किसी स्पीकर पर ढाडी अमर सिंह सौंकी ‘वारें’ गा रहा था। अध्यापकों ने धनी राम का नाम अमर सिंह ढाडी के नाम से प्रेरित होकर अमर सिंह लिख लिया था। मगर सभी बच्चे ही नही, मास्टर त्रिलोचन सिंह, बिमला मास्टरनी और भोंदू मास्टर भी उसको धनिया कहकर ही बुलाते रहे थे। पढ़ाई की अपेक्षा धनी राम का मन साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों की तरफ अधिक लगता था। खेलों में भी उसकी कोई विशेष रुचि नहीं थी।

धनी राम जब गाँव के लाउड स्पीकरों में पंजाबी गाने बजते सुनता तो उसके कान उधर ही हो जाते थे। उसके कानों को बजते गीतों के सिवाय और कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। दा-चार बार सुनने के बाद सुना हुआ सारा गीत धनी राम को कंठस्थ हो जाता था और अगली बार जब वही गीत उसके कानों में पड़ता था तो धनी राम खुद सारा गीत गायक के साथ गाने लग जाता था।

पहली या शायद दूसरी कक्षा में था धनी राम उस समय, जब एक दिन स्कूल के एक पंजाबी भाषा के मास्टर त्रिलोचन सिंह ने उसको गाते हुए सुन लिया था। बस, फिर क्या था। उस दिन के बाद मास्टर बाल-सभाओं में उसको गाने के लिए खड़ा करने लगे थे।

इस प्रकार, धनी राम के गायन का आगाज़ हो गया था। स्कूल में गीत गाने पर मिले उत्साह के साथ वह गाँव की गलियों में मस्त होकर गाता घूमता था। स्कूल में भी वह अक्सर तख्ती पर ढोलक जैसी थाप देकर अपने सहपाठी बिल्लू के साथ हरदम गाता रहता था। स्कूल के समारोहों में धनी राम की तरह उससे दो तीन साल बड़ा एक और छात्र जिसका नाम बहादुर था, भी गाया करता था। बहादुर को सभी प्यार से ‘बावा’ कहकर बुलाते थे। यद्यपि बावा धनी राम से दो-तीन वर्ष बड़ा था, पर गाने के शौक के कारण धनी और बावा के बीच दोस्ती हो गई थी। दोनों मिलकर स्कूल से बाहर जहाँ कहीं भी अवसर मिलता, गा लेते थे। खाली समय में दूर खेतों के बीच जाकर रियाज़ करते गाते रहते। गाँव से कुछेक दूरी पर नहर के पास पानी की एक मोटर हुआ करती थी। आम तौर पर धनिया और बहादुर उस मोटर पर लगे नीम के दरख़्त के नीचे जाकर बैठा करते थे। उस जगह को वे ‘नीम वाली मोटर’ कहा करते थे।

उन दिनों में दुग्गरी के ही दो गवैये शेरू और मिहरू काफ़ी प्रसिद्ध थे। वे तूम्बी और अलगोजों के साथ दोनों भाई बहुत बढ़िया गाते थे। इधर-उधर अक्सर उनके अखाड़े लगते रहते थे। ‘नागण दी चूड़ी लियादे वे, मैं रोज़ बालमा कहिंदी’ और ‘दो तारा वजदा वे रांझणा, नूरमहल दी मोरी’ गीत उन दिनों में बहुत प्रसिद्ध हुए थे। एक दिन उनके करीब ही अखाड़ा लगा हुआ था। धनी राम और बावा भी उन्हें सुनने चले गए। वहाँ अच्छी-खासी भीड़ थी। लोग उन्हें इनाम देकर अपनी पसंद के गीत सुन रहे थे। यह देखकर धनी राम ने बावा से कहा था, “ओए बावे, हम भी गायें ? हमें पैसे मिलेंगे।“

यह सुनकर बावा को लालच आ गया था, “हाँ यार, मैं करता हूँ मिहरू चाचा से बात।“

दोनों स्टेज के करीब चले गए और मिहरू को इशारे से अपने पास बुलाकर बावा कहने लगा, “चाचा, हमें एक गीत गा लेने दे।“

“तुम्हें गाना आता है?“

“हाँ।“ धनी राम बोल पड़ा था।

“अच्छा फिर आ जाओ।“

धनी राम स्टेज पर चढ़कर गाने लगा था, “नाथा सांभ मुंदरा, साथों कट्ट नीं फकीरी होणी।“

धनी राम की चुलबुली सी दिलकश मासूम आवाज़ के साथ श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए थे। लोगों ने फरमाइश करके उनसे दो-तीन गाने और सुने थे। बावा ने गाने में धनी राम का साथ दिया था। उस दिन उनके आठ रुपये बन गए थे। पैसे लेकर घर की तरफ आते हुए वे दोनों उलटी छलांगे लगा रहे थे। धनी राम खुशी में मस्त हुआ पड़ा था, “ओए बावे, ये तो काम ही बहुत बढ़िया है। हम गाने गाना न शुरू कर दें?“

“गाने तो हम लग ही गए आज से। हम भी अब चाचा मिहरू और शेरू की तरह जहाँ दांव लगेगा, गाने चले जाया करेंगे।“

“हाँ।“ धनी राम ने हाँ में हाँ मिलाई थी।

उस दिन के बाद दोनों में गाने की इच्छा प्रबल हो गई थी। उन्होंने कुछ गीत भी कंठस्थ कर लिए थे। नहर के किनारे खेतों में जाकर वे उन गीतों को ऊँची आवाज़ में गाकर रियाज़ करते रहते थे।

गाँव में नौजवान लड़कों ने ‘नगर सुधार समाज सेवा सभा’ बना रखी थी। इन्होंने ही गाँव की धर्मशाला और रविदास गुरद्वारा बनाया था। इस सभा की ओर से पूरन भगत, माता सरस्वती, गुरू रविदास आदि के जीवन पर आधारित ड्रामे करवाये जाते थे। धनी राम और बावा ड्रामा देखने चले जाते थे।

इसी प्रकार, एक दिन वह ड्रामा देख रहे थे। ड्रामों के बीच में गायक ड्रामे से संबंधित गीत गाया करते थे। उस दिन भगत पूरन का नाटक खेला जा रहा था। बावे ने प्रबंधकों से गाने के लिए पूछ लिया था और प्रबंधकों ने उन्हें बच्चा देखकर खुशी-खुशी मंच पर गाने की अनुमति दे दी थी।

स्टेज पर चढ़ते समय धनी राम की बांह पकड़कर बावा बोला था, “धनिया, गाना शुरू करने से पहले तू कान पर हाथ रखकर ऊँची टेर को ज्यादा देर तक खींचना। इससे इन लोगों को लगेगा कि हम बहुत बड़े गवैये हैं।“

“फिक्र न कर, मैं तो रंग जमा दूँगा।“

स्टेज पर जाकर धनी राम और बावा ने माइक के गिर्द अपनी अपनी पोजीशन ले ली थी। साउंड वाले ने आकर माइक नीचा करके उनके कद के बराबर कर दिया था। धनी ने एक हाथ कान पर रखकर टेर लगानी शुरू की थी, “होअ....हो...अ...।“

जब बावा ने धनी राम की साँस रुकती देखी तो उसने टेर उठा दी। जब बावा का दम फूलने लगा तो धनी राम ने टेर ऊँची कर दी थी। इस पर स्टेज के पास आकर एक आदमी ने उन्हें धमकाया था, “गाना भी गाओगे या हेक ही लगाते जाओगे?“

बावा खीझ गया था, “अब आये हैं तो मामा गा कर ही जाएँगे। चल सुन फिर...।“

धनी राम ने एकदम गाना शुरू कर दिया था, “खट्टी आपणे खसम दी खाणी, यार दा नीं घर पटणा...।“

अभी उसने अस्थायी खत्म की ही थी कि एक व्यक्ति ने आकर उन्हें गाना गाने से रोक दिया था, “ये नहीं काका ! कोई गाना सुनाओ।“

“अच्छा जी।“ कहकर धनी राम ने दूसरा गीत आरंभ कर दिया, “खिच लै बांह फड़ के, बोते ते बैठिया यारा... वे खिच लै बांह फड़ के।“

बावा ने कोरस शुरू कर दिया, “हो खिच लै बांह फड़ के...।“

एक प्रबंधक ने आकर दोनों को कलाई से पकड़कर नीचे खींच लिया, “मैं खींचता हूँ तुम्हें बांह पकड़कर।... बड़े आए गवैये।... ऐसे गाने नहीं यहाँ गाये जाते।“

“फिर कैसे गाने गाएँ?“ धनी राम ने भोलेपन से सवाल किया।

“पूरन भगत के। बैठ कर सुन लो। पता चल जाएगा तुम्हें।“

वे दोनों दर्शकों-श्रोताओं के बीच दरियों पर बैठ गए थे। भगत पूरन को लेकर खेला गया यह संगीतमयी नाटक था। इसमें अनेक छोटे-छोटे गीत थे। धनी ने उनमें से कुछ याद कर लिए थे। धनी की स्मरण-शक्ति और पकड़ शुरू से ही बहुत तेज़ थी। 

खाली समय में धनी राम और बावा इन गीतों की रिहर्सल करते रहते।

उससे कुछ दिन बाद गाँव में जमींदारों की बेटी का विवाह था। धनी राम और बावा की जोड़ी वहाँ भी जा पहुँची थी। ‘आनंद-कारज’ के बाद बारात बारात-घर में आराम कर रही थी। बाराती दारू पी रहे थे। उनके पास चार-पाँच बाज़ीगरनियाँ नाच रही थीं। बाराती शराब के नशे में उनके साथ छेड़खानियाँ कर रहे थे और वे उन्हें टपकते हुए गीत सुना रही थीं। मचलकर बाराती बाज़ीगरनियों के ऊपर से नोटों की बारिश कर रहे थे। 

यह दृश्य देखकर बावा ने धनी राम को कुहनी मारी थी, “कैसे? लगायें अखाड़ा हम भी?“

“चल।“

वे नाचती हुई बाज़ीगरनियों के पास जाकर पूरन भगत वाला रटा हुआ गाना गाने लग पड़े थे, “पुत्त पूरना वे तू ना मेरे पेटों जाया...।“

उन्हें एक दो बार शराबी बारातियों ने गाने से रोका था। इस पर वे और ज़ोर-ज़ोर से गाने लग पड़े थे। एक शराबी खीझ गया और उसने पैर से उतारकर जूती धनी राम की ओर फेंक मारी, “भागो यहाँ से। हमने नहीं सुनने तुम्हारे गाने... लगते कुछ पूरन भगत के।“

बावा ने वही जूती उठाकर शराबी की ओर दे मारी तो उसकी बोतल जूती लगने से उलट गई और दारू बाहर बह गई।

“पकड़ो रे।“ एक बाराती उन्हें पकड़ने के लिए उठ खड़ा हुआ था।

धनी राम और बावा दोनों वहाँ से दुम दबाकर भागे थे और पीछे मुड़कर नहीं देखा था। भागते हुए वे उसी नीम वाली मोटर पर आ गए थे जहाँ बैठकर वे अक्सर गीत गाया करते थे। दोनों का दम फूल रहा था और पसीने-पसीने हुए पड़े थे। उन्होंने चहबच्चे पर बैठकर पहले तो दम लिया और फिर जी भरकर पानी पिया था।

पानी पी कर धनी राम ने कपड़े उतारे और हौदी में डुबकी मारी। नाक दबाकर वह काफी देर तक पानी के अंदर ही रहा था। जब पानी में से सिर बाहर निकालकर खड़ा हुआ था तो यह एक दूसरा ही धनी था। उसके चेहरे पर एक आनेखी ही चमक और आभा ठाठें मार रही थी। उसकी आँखों में अंगारे दहक रहे थे। उसके चेहरे पर एक आत्म विश्वास झलक रहा था। उसका बदला हुआ रूप देखकर बावा बोला था, “अरे यार, तू तो नहा कर बड़ा निखर गया है।“

पानी से बाहर निकलकर धरती पर पहला पैर रखते हुए धनी राम ने दमदार और दृढ़ निश्चय वाली आवाज़ में कहा था, “बावा, आज से मैं अपने गाने वाले गीत खुद ही लिखा करूँगा।“






बावा ने देखा, यह वो धनी राम नहीं था जो पानी में घुसा था। यह कोई दूसरा ही धनी था। धनी गीतकार और धनी गायक जिसने दुनिया से अपनी कला का लोहा मनवाने का दिल में दृढ़ निश्चय कर लिया था।

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