Sunday, June 3, 2018

7 कांड -सहायक गायक

शहीद (उपन्यास) -बलराज सिंह सिद्धू (अनुवाद -सुभाष नीरव)

चमकीले को घर गए कई दिन हो गए थे। एक शाम चमकीला केसर टिक्की से बोला, “आ, आज मेरे साथ चल। हम गाँव चलते हैं।“

साइकिल पर सवार होकर दोनों दुग्गरी आधी रात को पहुँच गए। दारू का अधिया वह साथ ले गए थे। टिक्की को बैठक में बिठाकर चमकीला गिलास और पानी का जग लेने गया तो टिक्की को चमकीले के संग लड़ती किसी औरत की आवाज़ें सुनाई देने लगी थीं। चमकीला बैठक में आया और ऊँची आवाज़ में रेडियो लगाकर बोला, “टिक्की, तू गाने सुन। मैं पानी लेकर आया।“

चमकीला फिर जाकर चैके में किसी औरत से लड़ने-झगड़ने लगा था। रेडियो की तेज आवाज़ के बावजूद उनके लड़ने-झगड़ने की आवाज़ टिक्की को सुनाई दे रही थी। कुछ देर बाद चमकीला बैठक में आया और रेडियो बंद करके बोला, “चल टिक्की, हम तेरे कमरे में ही चलते हैं। यहाँ आराम से हमें कोई नहीं सोने देगा।“

रात का एक बज रहा था। दोनों जने साइकिल उठाकर लुधियाना आ गए। रास्ते में टिक्की ने चमकीले से पूछा था, “वो जो जनानी तेरे साथ झगड़ती थी, वो कौन थी? तू ब्याहा हुआ है?“

चमकीला कुछ नहीं बोला था। लेकिन केसर टिक्की समझ गया था कि चमकीला विवाहित था और लड़ने वाली औरत उसकी पत्नी थी। टिक्की को ज्ञान हो गया था कि चमकीले की घरवाली के साथ नहीं बनती थी और वह घर से दुखी था। इसीलिए वह घर जाने की बात को अक्सर टालता रहता था। वह देर रात को घर जाया करता था और सवेरे मुँह-अँधेरे ही उठकर लुधियाना आ जाता था। वश चलता तो चमकीला लुधियाना में टिक्की के पास ही रात काटने को तरजीह देता था। टिक्की को किराया न दे सकने के कारण अपना किराये वाला कमरा छोड़ना पड़ गया था।

दो-तीन महीने टिक्की और चमकीला दोनों अकाल ट्रांसपोर्ट के मैनेजर हरनेक सिंह की कृपा के कारण उसकी वर्कशाॅप में सोते रहे थे। फिर, टिक्की ने तिलक राज का कमरा किराये पर ले लिया था। टिक्की ने धनी राम को अपने साथ रहने की सलाह देते हुए कहा था, “तू मेरे साथ ही किराये के कमरे में रह लिया कर। हम दोनों प्रोग्राम करके किराया आधा-आधा दे दिया करेंगे। और फिर, रोटी पानी भी हमें चाचा तिलक राज की बेटियाँ सिम्मी और बबली बनाकर खिलाती रहेंगी।“

चमकीला मान गया था और उसने टिक्की के संग रहना शुरू कर दिया था। उस दिन दुग्गरी से आकर कमरे में दोनों ने दारू का अधिया पिया और सो गए थे।

अगले रोज़ केसर टिक्की ने गुरचरन पोहली के साथ प्रोग्राम पर जाना था। टिक्की दारू का टूटा हुआ जब उठ न सका तो पोहली उसे लेने आ गया था। चमकीले को सोया देख पोहली ने पूछा था, “ये लड़का कौन है?“

“यह चमकीला है। शिंदे के साथ हैल्पर सिंगर के तौर पर जाता है।“

उस दिन पोहली की मंडली के मदन लाल ने संग नहीं जाना था। पोहली को एक आदमी की ज़रूरत थी। उसने टिक्की से पूछा था, “अगर यह खाली है तो इसे उठाकर पूछ ले। प्रोग्राम पर ले चलते हैं। और फिर, सुनकर भी देख लेते हैं, कैसा गाता है।“

यह बात सुनकर चमकीला झट-से उठकर तैयार हो गया था। अबोहर के पास गाँव गिड्डू खेडे़ में प्रोग्राम था। रास्ते में चमकीला पूछने लगा, “हम काफी दूर आ गए लगते हैं?“

पोहली ने जवाब दिया था, “घबरा मत। ये तो कुछ नहीं। हम तो राजस्थान तक जाया करते हैं।“

“घबराता नहीं। मैं तो उससे भी दूर जाया करूँगा।“ चमकीला सड़क को निहारता हुआ बोला था।

गुरचरन पोहली और प्रोमिला पम्मी ने स्टेज पर पाँच-छह गीत गाकर चमकीले को एक गीत खाने का समय दिया तो चमकीले ने अपना लिखा गीत गाया था, “कड्ढ़ लै संदूक विचों रेशमी गरारा... अग्ग दे...भम्बूके वांग मच्च भाबिये, नीं तू गिद्धे विच दिउर नाल नच्च भाबिये...।“

यह गीत सुनकर सारे श्रोता नाचने लग पड़े और चमकीले की पेमेंट से दुगने पैसे उस समय इनाम में इकट्ठे हो गए थे। पोहली ने प्रोग्राम का मेहताना दो सौ रुपये की बजाय चमकीले को ढाई सौ रुपया दिया। प्रोग्राम से लौटते हुए प्रोमिला पम्मी ने चमकीले से पूछा था, “गीत तू खुद लिखता है?“

“हाँ जी।“ चमकीले ने जवाब दिया था।

“मुझे भी कुछ गीत लिखकर देना। ऐसा कर, कल गीत लेकर नौ बजे हमारे घर आ जाना। मैं तेरे गीत देख लूँगी।“ पम्मी ने निमंत्रण दे दिया था।

तिलक राज के घर के सामने चमकीले और टिक्की को उतारकर पोहली एक शराब की बोतल भी गाड़ी में से निकालकर दे गया था। उन्होंने रात में बोतल पी और रोटी मकान मालिक तिलक राज के घर से खाकर सो गए थे।

अगले दिन गीतों वाली काॅपी लेकर चमकीला टिक्की के साथ पोहली की कोठी चला गया था। पोहली ने आदर-सत्कार के साथ उन्हें बिठाकर चाय-पानी पिलाया था। तब तक पम्मी भी आ गई थी। उसने नीचे बिछी दरी पर टिक्की को ढोलकी देकर बिठा दिया और चमकीले को बाजा पकड़ा दिया था।

“चमकीले, कोई गीत सुना।“ पम्मी ने फरमाइश की थी।

“नहीं भैण जी, पहले आप सुनाओ।“

पम्मी ने हीर की एक कली गाकर सुनाई और हरमोनियम चमकीले की ओर सरका दिया था, “ले चमकीले, अब कोई अपना गीत सुना।“

हरमोनियम पर उंगलियाँ फिराते हुए चमकीले ने पूछा था, “भैण जी, पहले सोलो सुनाऊँ या दोगाना?“

मध्यम से उच्चतम सप्तक तक हरमोनियम पर गदर मचाती चमकीले की उंगलियाँ देखकर पम्मी की आँखें फटी रह गई थीं, “मरे तेरी इतनी तैयारी है! तू हमारे साथ ही चला कर।“

“यह बात छोड़ो भैण जी, आप मेरा गीत सुनो। सोलो तो आपने कल सुन ही लिया था। आपको दोगाना सुनाता हूँ।“ चमकीले ने ‘चट्ट लै तली दे उŸो धरके, मिŸारा मैं खंड बण गई...’ गाना शुरू कर दिया था। उस गीत के खत्म होते ही चमकीले ने ‘नार बैटरी वरगी दा, दूरों लिश्कारा पै जांदा...’ छेड़ लिया था। पम्मी गीत सुनती हुई बैठी-बैठी ही झूमने लगी थी। जब चमकीला गाकर एक गीत खत्मक करता तो पम्मी उसे कह देती, “और सुना।“

चमकीला दूसरा गीत शुरू कर देता। वह जो भी गीत सुनाता, पम्मी उसको चुनकर कह देती थी, “ये गीत भी मुझे दे दे। ये गीत भी लिखवा दे। चमकीले, तेरा कोई जवाब नहीं।“

चार-पाँच गीत सुनने के बाद पम्मी पानी लेने वहाँ से उठकर गई तो चमकीला टिक्की के साथ सलाह करने लगा था, “चैड़े होकर गीत सुनाए जाते हैं और ये सारे ही मांगे जाती है। क्या करें? गीत लिखवा दें कि न?“

टिक्की पैसे को लेकर लालची किस्म का इन्सान था। उसने चमकीले को फूंक दे दी थी, “ना ! इसे पैसे लिए बिना गीत न लिखवाना। बहाना बना देना कि लिखकर दे जाऊँगा।“

पम्मी वापिस आकर दरी पर बैठी तो चमकीले ने कहा, “भैण जी, लो एक सोलो आइटम सुनकर देखो।“

चमकीले ने गीत गाना आरंभ किया था, “हत्थ अड्दी फिरदी ऐ, तारा पुŸा नूं हिक नाल ला के। दे दिओ इक दमड़ा नीं, मैं आऊणा पुŸा दी लाश जला के।“

रानी तारामती की दर्दभरी जीवनगाथा वाला यह गीत गाते हुए चमकीला की आवाज़ में करुणा और बेइंतहा का वैराग्य था। गीत के बोल कलेजे को खींचते थे। गीत सुनते हुए पम्मी की आँखें नम हो गई थीं। गीत समाप्त हुआ तो वह आँखें पोंछती हुई बोली थी, “चमकीले, दो गाने मैं बाद में लूँगी। सबसे पहले मुझे यही सोलो गीत दे दे।“

“गीत तो मैं भैण जी दे दूँगा, पर एक शर्त है। गीत तब दूँगा, यदि आप इसे रिकार्ड करवाओगे।“

पम्मी ने गीत रिकार्ड करवाने का वायदा करके उससे गीत ले लिया था और अपने वायदे को पूरा करते हुए कुछ समय बाद ही उसने उसे रिकार्ड भी करवा दिया था।

तब से चमकीला पोहली-पम्मी के साथ प्रोग्रामों पर जाने लगा था। उसके बाद माणक, शिंदा, हरचरन ग्रेवाल या जिस कलाकार को ज़रूरत होती, चमकीला उसके साथ प्रोग्रामों पर साज बजाने या सहायक गायक के तौर पर जाने लगा था। पर सार्वजनिक तौर पर वह पगड़ी बाँधकर रखता और प्रोग्रामों में उसके सिर पर पुरातन पंजाबी गवैइयों की तरह माड़ लगी शमले वाली पगड़ी होती थी।

No comments:

Post a Comment