Wednesday, June 6, 2018

4 कांड -तब्दीली

शहीद (उपन्यास) -बलराज सिंह सिद्धू (अनुवाद -सुभाष नीरव)

पाँचवी कक्षा पास करके जब धनी राम छठी कक्षा में आया था तो उसकी माता का स्वर्गवास हो गया था। घर में भैंसें रखी हुई थीं और दूध बेचकर घर का गुज़ारा चलता था। धनी राम की माता ही भैंसों की देखभाल किया करती थीं। उसके देहांत के बाद यह जिम्मेदारी धनी राम के सिर पर आ गई। उसको मज़बूरन पढ़ाई छोड़नी पड़ी। बड़ी बहन स्वर्ण चमिण्डे में ब्याही हुई थी। छोटी बहन चरनो का अभी विवाह होना था। उसको विवाह के बाद घर में रोटी-पानी का काम काफ़ी कठिन हो जाने वाला था। धनी राम की बहनों ने ज़ोर डालकर छोटी उम्र होने के बावजूद धनी राम को विवाह करवाने के लिए राज़ी कर लिया था।

धांदरे वाले गुरदयाल सिंह ने बिचौलिया बनकर पखोवाल के करीब के गाँव नंगल खुर्द वाले तारा सिंह और सुरजीत सिंह की लड़की गुरमेल कौर के साथ चमकीले का रिश्ता पक्का करवा दिया था। धनी राम के परिवार जैसा ही उसके ससुराल का परिवार था। गुरमेल सिंह, बलबीर सिंह, सुखविंदर सिंह तीन साले और गुरचरन कौर, गबर कौर दो सालियाँ। मौके के रिवाज के अनुसार धनी राम ने अपनी होने वाली पत्नी को नहीं देखा था। करीब तीस आदमियों की बारात ट्राली में गई थी। 7 दिसंबर 1975 में पंद्रह वर्षीय धनी राम का एक सादी सी रस्म करके विवाह हो गया था।

धनी राम की पत्नी की उम्र उससे कुछ बड़ी थी और रंग भी रविदासियों की लड़कियों जैसा कुछ घसमैला-सा ही था। धनी का अपना रंग साफ़ था और आँखें भी हल्की भूरी थीं। थोड़ा शौकीन होने के कारण वह पूरा बन ठनकर रहता था। उसकी पत्नी का स्वभाव भी धनी राम के स्वभाव से बिल्कुल उलट था। लेकिन फिर भी उसने अपनी पत्नी को अपनी नापसंदगी प्रकट नहीं होने दी थी। मगर वह विवाह के बाद खुश होने के बजाय मायूस रहने लगा था और एक दिन उसने अपना दुखड़ा अपनी बड़ी बहन के पास जाकर रोया था -

“स्वर्ण, ये तुमने क्या कर दिया? रिश्ता करने के समय कुछ तो देख लेते। कहाँ मैं और कहाँ वो? उम्र भी मुझसे बड़ी है और रंग भी...। हमारा कोई मेल है? विचार तो बिल्कुल ही नहीं मिलते हमारे।“

“जहाँ संजोग होते हैं धनिया, वहीं संबंध बनते हैं।“ धनी राम की बड़ी बहन स्वर्ण ने समझाया था।

“कुछ भी कहो, विवाह तो मैं एक और करवाऊँगा। वह भी अपनी मर्ज़ी का। चाहे मुझे कोई भगाकर क्यों न लानी पड़े। पर मैं अपनी रूह के बराबर वाली से ही विवाह करूँगा।“ गुस्से में बोलकर धनी राम चमिण्डे वाली अपनी बहन के घर से उठकर आ गया था।

उन दिनों बिरादरी में से जसवंत संदीले का विवाह हो गया था। संदीला खुद तो मध्यम से रंग का था, पर उसकी घरवाली काफी सुन्दर थी। संदीला धनी राम को जलाने के लिए धनी के सामने से अपनी पत्नी को लेकर गुज़रता तो धनी राम की छाती पर साँप लोटने लगते। तब धनी राम, बलराज इंडस्ट्रीज वालों के चूड़ियाँ डालने और हाई हैड चलाने का काम करता था। उसका काम पर मन नहीं लगता था। वह दिहाड़ियाँ तोड़ने लग पड़ा था तो मालिकों ने उसे काम पर निकाल दिया। विवश होकर धनी राम को पंचायत मैंबर बूटा सिंह के साथ दिहाड़ियाँ करनी पड़ी थीं। वह कुछ दिन पशुओं को चारा डालता रहा था और मक्की गोड़ता रहा था। फिर उसको लुधियाना में ऐलक्स कंपनी वालों के फ्लैट की नौकरी मिल गई थी। ऐलक्स कंपनी सिलाई, कढ़ाई और बुनती की मशीनों का निर्माण करते थे। धनी राम नौकरी के साथ साथ अपने ड्रामों और गायकी का शौक भी पूरा करता रहा था। गुरद्वारे जाकर कीर्तन, धार्मिक गीत या जगरातों पर माता की भेंटें गा देता था। विवाह-समारोहों पर जाकर वह सेहरे और शिक्षाएँ गाने का मौका भी नहीं छोड़ता था। इस प्रकार, उसके अंदर का गायक और गीतकार जवान होता गया था।

जहाँ कहीं भी धनी राम को अवसर मिलता, वह साज़ बजाने और गाने का हुनर सीखता रहता था। गाँव में धनी राम के दूर के रिश्तेदार दलजीत धूड़कोटिये की परचून की दुकान थी। धूड़कोटिये दुकान पर बैठा हरमोनियम बजाता रहता था। धनी राम समय-असमय उसके पास जाकर उससे थोड़ा-बहुत हरमोनियम सीखता रहता। धनी राम की गीतकारी भी साथ साथ चलती जाती थी। वह अपने गीत लेकर प्रसिद्ध कलाकारों के पास जाने लगा था। उसने धन्ना सिंह रंगीला, प्यारा सिंह पंछी, सीतल सिंह सीतल, नरिंदर बीबा, हरचरन ग्रेवाल जैसे कई कलाकारों को अपने गीत दिखाये और दिए थे। इस प्रकार, कोशिशें करता हुआ वह कई कलाकारों के संपर्क में आ गया था। इसके साथ ही धनी राम साज़ भी सीखता रहा और अपनी गायकी-गीतकारी को भी निखारता रहा। धनी राम जानता था कि इस समय की गई मेहनत उसकी ज़िन्दगी में अहम तब्दीली ला सकती थी। वह तन और मन से संगीत को समर्पित हो गया था। उठते-बैठते, खाते-पीते और सोते समय वह गीतों में ही खोया रहता था।

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