जब ‘टकूए ते टकूआ खड़के’ गीत अमर सिंह चमकीले ने पहली बार सुरिंदर सोनिया को दिखलाया था तो सोनिया ने चमकीले से कहा था, “चमकीले, ये गीत गरम सा है। इसमें खड़का-दड़का सा ज्यादा है। कोई दूसरा गीत तैयार कर लेते हैं।“
“पंजाबी के गीत ऐसे ही होते हैं। आप रिकार्ड तो करवाओ। गीत को खड़कता देखना।“ चमकीले ने गर्व के साथ उत्साहित होकर जवाब दिया था।
गीत रिकार्ड होकर मार्किट में आया तो चारों ओर धूम मच गई थी। हर तरफ ‘टकूए ते टकूआ खड़के’ बज रहा था। सोनिया और चमकीला गुरदासपुर में कार्यक्रम करने गए हुए थे। कार्यक्रम में इस गीत की तीन बार फरमाइश हुई थी।
एक भगवे वस्त्रों वाले साधू ने तो इस गीत पर खुश होकर पाँच-पाँच, दस-दस के नोट अनेक बार इनाम में भी दिए थे। तीन चार बार चमकीले और सोनिया ने यही गीत गाया था।
कार्यक्रम की समाप्ति पर वही साधू चमकीले के पास आकर पचास रुपये इनाम के तौर पर देने लगा तो सोनिया ने साधू से पूछ लिया था, “बाबा जी, आपको क्या अच्छा लगा इस गीत में?“
साधू बड़े धैर्य के साथ बोला था, “बीबा, कुछ भी बुरा नहीं है इस गीत में। सारा गीत ही बढ़िया है। इस आध्यात्मिक गीत में मनुष्य जीव की परमात्मा के साथ लौ लगने का वर्णन है। ‘तेरे भाइयाँ नाल पै गई दुश्मणी, तेरे नाल पै गई यारी...पंज भाई, इक बापू तेरा, रिश्तेदारी भारी। जे तैथों नहीं निभदी, छड्ड दे वैरने यारी।’ इस में पाँच भाई मनुष्य शरीर के पाँच तत्वों को कहा गया है। बाूप अकाल पुरुष है। विषय-विकार मनुष्य को परमात्मा से तोड़कर अपनी ओर खींचते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे विकारों और प्रभु भक्ति के बीच खड़े इंसान की अवस्था का वर्णन है इस गीत में...।“
“अच्छा, यह अर्थ हैं गीत के। मैं तो कुछ और ही गंदे से अर्थ निकाल रही थी।“ साधू द्वारा की गई गीत की व्याख्या सुनकर सोनिया दंग रह गई थी।
“जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि, बच्चा ! गीत या शब्द गंदे नहीं होते बीबी। इंसान की सोच गंदी होती है, जो अपने अनुसार हर बात के अर्थ निकालती है। बढ़िया सोच बढ़िया अर्थ सर्जित किया करती है। गंदा जे़हन गंदा ही सोचा करता है।“ कहकर साधू चला गया था।
लेकिन सुरिंदर सोनिया के कानों में उसके बोल काफ़ी समय तक गूंजते रहे थे।
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