दफ्तर खोलते ही तीन प्रोग्राम बुक हो गए थे - एक दाना मंडी, मुक्खू का, दूसरा जालंधर के करीब चिट्टी गाँव का और तीसरा तहसील नकोदर में बिल्ली वडैच का। पैंतीस सौ के हिसाब से बुक हुए इन कार्यक्रमों में से पाँच-पाँच रुपये अडवांस में मिल गए थे। चमकीला मारे खुशी के नाचने लग पड़ा था।
टिक्की ने चमकीले को झकझोरा था, “प्रोग्राम तो बुक कर लिए, अब अपने साथ गायिका कौन-सी ले जाएगा?“
चमकीला को अचानक याद आया था, “हाँ यार, यह तो मैंने सोचा ही नहीं। अब क्या करें?“
“शिंदे के दफ्तर चलकर पूछते हैं। वहाँ कोई महिला आर्टिस्ट मिल जाए।“ टिक्की ने सलाह दी थी।
“ठीक है चल।“ चमकीला उठकर चल दिया था।
वैसे सोनिया के साथ कार्यक्रम करते समय कई बार वह अमर नूरी को संग ले जाया करते थे। पर अमर नूरी का झुकाव फिल्मों और टेलीविजन की ओर अधिक था। इसके अलावा वह दूसरे गायकों के साथ प्रोग्रामों में व्यस्त रहती थी।
अभी वे सुरिंदर शिंदे के दफ्तर की तरफ जा ही रहे थे कि चमकीले को ऊषा किरन का ख्याल आ गया था। ऊषा किरन कभी कभी शिंदे के साथ गाने के लिए जाया करती थी।
चमकीला जानता था कि ऊषा का पति रामजीत मौजी, नेकी कातिल के दफ्तर में मिलेगा। चमकीला और टिक्की मौजी से जाकर मिले। मौजी ने खुशी खुशी स्वीकृति दे दी। वहाँ से लौटते हुए टिक्की ने चमकीले को सलाह दी थी, “ऊषा की आवाज़ तेरे साथ मेल नहीं खाती। तू कोई और लड़की तलाश जो तेरे बराबर भिड़कर गा सके। हम शिंदे के दफ्तर चलते हैं, छŸाीस लड़कियाँ मिल जाएँगी।“
केसर टिक्की की बात चमकीला के दिल को लग गई थी। वह टिक्की के साथ शिंदे के दफ्तर चला गया था। वहाँ कोमेडी कलाकार प्रिथीपाल सिंह ढक्कन बैठा था। चमकीले ने उसे अपनी समस्या से उसे परिचित करवाया, “हमारे पास तीन प्रोग्राम बुक हो गए हैं, पर पंगा यह है कि साथ ले जाने के लिए कोई गायिका नहीं है।“
ढक्कन लारें टपकाने लग पड़ा था, “पहले एक बोतल शराब और आधा किलो शूअर का अचार लेकर आओ। फिर तुम्हारा मसला हल कर देता हूँ।“
चमकीला भागकर बोतल और अचार ले आया।
शराब की बोतल खाली हुई तो चमकीला ने ढक्कन को याद दिलाया, “हाँ, बता फिर। क्या है हमारे मसले का हल?“
“ले भई, स्कीम मैं तुम्हें बता देता हूँ। कोशिश तुम्हें करनी है।“
“जल्दी बता, क्या स्कीम है?“ चमकीला उतावला हुआ पड़ा था।
“माणक के साथ फरीदकोट वाले ज्ञानी गुरचरन सिंह मट्टू की एक लड़की गाया करती थी, अमरजोत। माणक के साथ उसका सैट टूट गया है। माणक का तुम्हें पता ही है, दारू पीकर पगला जाता है। तुम उसे मनाकर संग ले जाओ। सुंदर गाती है। वैसे देखने में भी सुंदर है।“
“उसको तो तू जानता है। ऐसा कर, तुझे पचासेक रुपये दे देंगे। तू हमारा काम करा दे।“ चमकीले ने ढक्कन को लालच दिया था।
ढक्कन चमकीले की मज़बूरी समझता था, बोला, “ऐसा कर, फिर एक बोतल और ले आ।“
चमकीला एक बोतल और खरीद लाया था। वह पीकर ढक्कन अपने मटके जैसे पेट पर हाथ फेरता हुआ मुकर गया था, “नहीं भाई। मैं नहीं जा सकता। मैं दफ्तर छोड़कर गया तो शिंदा मुझे गुस्सा होगा। तुम अपना काम आप संवारो। रास्ता मैंने तुम्हें बता दिया है। अब उस पर चलना तुम्हें खुद है।“
टिक्की बीच में बोल पड़ा था, “चल छोड़ इसे चमकीले, मैं जाता हूँ फरीदकोट। मुझे दे किराया।“
चमकीले ने झट से डेढ़ सौ रुपया जेब में से निकालकर टिक्की के सामने रख दिया था, “यह उठा। सारा काम फिट करके अमरजोत को साथ लेकर आना।“
वे बारह बजे बैठे थे पीने, पीते पीते तीन बज गए थे। टिक्की जब नीचे उतरा तो उसको पता चला था कि अमरजोत का पिता रंगीले जट्ट के दफ्तर में बैठा है। वह अमरजोत को रंगीले जट्ट के साथ सैट बनवाने आया था। टिक्की रंगीले जट्ट के दफ्तर में चला गया उससे मिलने।
“सतिश्री अकाल भापा जी। आपके साथ बात करनी थी।“
“मैं कोई प्राइवेट बात कर रहा हूँ। तुम चलो, मैं करीब आधे घंटे बाद तुमसे मिलता हूँ।“ अमरजोत के पिता ने टिक्की को टरका दिया था।
“जी ठीक है। मिलकर ज़रूर जाना। बहुत ज़रूरी बात करनी है आपके साथ।“
“हाँ, तुम बाहर चलो। मैं आता हूँ।“
टिक्की बाहर आकर वही खड़ा हो गया और उसने चमकीले को संदेशा भिजवाकर बुला लिया।
चमकीला जब वहाँ पहुँचा तो टिक्की बताने लगा, “चमकीले, मैं फरीदकोट हो आया।“
“क्या मतलब?“
“प्यासा ही कुएँ के पास आ गया है। अमरजोत का बापू ऊपर रंगीले जट्ट के दफ्तर में बैठा है।“
यह सुनकर चमकीले को चाव चढ़ गया था, “जल्दी ला उसे दफ्तर में।“
“नहीं, दफ्तर में नहीं। हम उसको अपने कमरे में ले चलते हैं। वहाँ परदे में बात हो जाएगी। यहाँ सारी मार्किट में शोर मच जाएगा।“ टिक्की ने दूर की सोचकर बात की थी।
कुछ देर बाद अमरजोत का पिता नीचे उतर आया और दोनों जने उसे अपने कमरे में ले गए। रंगीले जट्ट के साथ बात में सफलता न मिलने के कारण अमरजोत का पिता आसानी से मान गया था। शर्तों के अनुसार छह सौ रुपया प्रति प्रोग्राम और दो लोगों का फरीदकोट से आने-जाने का किराया तय हो गया था। चमकीले ने अमरजोत के पिता की बहुत सेवा की और रौब डालने के लिए बताया था कि सोनिया के साथ उसके कौन कौन से गीत आए थे। रात को अमरजोत का पिता उनके पास ही ठहर गया और अगले दिन सवेरे वह फरीदकोट लौट गया था।
अमरतोज के पिता ने जब अमरजोत को चमकीले के बारे में बताया तो उसने झिझक प्रकट करते हुए कहा था, “नया बंदा है। हमें उसके स्वभाव और डीलिंग के बारे में कुछ नहीं पता।“
अमरजोत के पिता ने चमकीले की तारीफ़ करते हुए कहा था, “स्वभाव तो बहुत बढ़िया है। बंदा भी शरीफ लगता है। अगर न ठीक लगा तो एक दो प्रोग्राम करके जवाब दे देंगे।“
अमरजोत राज़ी हो गई थी। अगले दिन अमरजोत अपने भाई जसपाल सिंह पप्पू को संग लेकर चमकीले के दफ्तर में सवेरे सवेरे ही पहुँच गई। चमकीला अभी गाँव से नहीं आया था। टिक्की उन दोनों बहन-भाई को अपने कमरे पर ले गया। वहाँ उसने उनके लिए चाय मंगवाई और कहा, “आप बैठो। मैं चमकीले को बुलाकर लाता हूँ।“
दफ्तर आकर टिक्की दुग्गरी जाने की अभी तैयारी ही कर रहा था कि तभी चमकीला साइकिल पर वहाँ पहुँच गया था। टिक्की ने अमरजोत और उसके भाई के आने के बारे में बताया तो चमकीला अमरजोत से मिलने के लिए उतावला हो उठा। जल्दी में उसने साइकिल को स्टैंड पर भी नहीं लगाया था। बल्कि वैसे ही ज़मीन पर फेंककर लिटा दिया था।
टिक्की ने अमरजोत और उसके भाई का चमकीले से परिचय करवाया था, “लो जी, आ गया चमकीला।“
अमरजोत ने चमकीले को देखकर व्यंग्य में हँसते हुए कहा था, “ये है चमकीला?“
दरअसल, अमरजोत हालांकि चमकीले से दो साल छोटी थी, पर अमरजोत उससे पहले प्रौढ़ आयु के गायकों प्यारा सिंह पंछी, धन्ना सिंह रंगीला, सीतल सिंह सीतल, करनैल गिल्ल, कुलदीप माणक जैसों के साथ गा चुकी थी और चमकीले का नाम सुनकर उसने कल्पना कर रखी थी कि कोई अधेड़ उम्र का गवैया होगा। लेकिन उन्नीस-बीस साल के नौजवान गायक को देखकर उसको अचम्भा हुआ था। वह हँस पड़ी और नाक चिढ़ाकर बोली थी, “ये मेरे साथ गा लेगा?“
अमरजोत के मुँह से यह बात सुनकर चमकीला कच्चा-सा होकर बेइज्ज़ती महसूस कर गया था। चमकीले को शरम से पानी पानी हुआ देख टिक्की ने बात को संभाला था, “आप इसकी उम्र न देखो। एकबार इसका गीत सुनो। चल सुना चमकीले।“
चमकीले ने चारपाई के नीचे से बाजा निकाला और बोला, “टिक्की भाई, कौन सा गीत सुनाऊँ?“
“जो चाहे सुना दे। तेरे सारे गीत ही बढ़िया हैं।“ टिक्की ने चमकीले के नंबर बनाने चाहे थे।
चमकीले हरमोनियम पर उंगलियाँ नचा कर गीत छेड़ लिया था, “जदों तैनूं मतलब सी, करदा सी भाबी-भाबी।“
गीत गाते हुए चमकीले की हरमोनियम पर कलाबाज़िया लगाती उंगलियाँ देखकर अमरजोत दंग रह गई थी। गीतों के बोल उसके अंदर गहरे तक उतर गए थे और मनभावन आवाज़ का नशा उसके दिमाग में चढ़ गया था। चमकीले का जादू अमरजोत के सिर चढ़कर बोल पड़ा था।
चमकीला एक के बाद एक गीत सुनाता गया था और अमरजोत मंत्रमुग्ध-सी बैठी सुनती रही थी। सुबह बैठे कब शाम हो गई थी, उन्हें गुज़रते वक्त का ज़रा भी अहसास नहीं हुआ था। अमरजोत चमकीले की गायकी की ओर बुरी तरह खिंची चली गई थी।
शाम को अमरजोत और पप्पू उठने लगे तो टिक्की ने उनसे पूछा था, “अब तो अँधेरा हो चला है। आपके रहने का कहीं प्रबंध करें?“
पप्पू ने मना कर दिया था, “नहीं, यहाँ अब्दुलपुर बस्ती, जमालपुर में मेरे बड़े भाई बलदेव की ससुराल है। हम वही जाएँगे और हमारा भाई वहीं है, उसे मिल लेंगे।“
“ठीक है, फिर कल को रिहर्सल के लिए दस बजे आप मेरे दफ्तर पहुँच जाना।“ जब वे जाने लगे तो चमकीला ने ताकीद कर दी थी।
“अच्छा, पहुँच जाएँगे।“ कहकर वे दोनों रिक्शा लेकर बस अड्डे की ओर चले गए थे।
उनके चले जाने के बाद टिक्की ने चमकीले से पूछा, “दस बजे का टाइम तो दे दिया, पर रिहर्सल कहाँ करेंगे?“
“भारत नगर चैक के पास बायीं ओर वाली गली में एक चैबारा है। वहीं रिहर्सल किया करेंगे।“ चमकीले ने पहले ही सब प्रबंध कर रखा था।
अगले दिन रियाज शुरू हो गया था। चमकीले ने अमरजोत के साथ आठ गीत तैयार किए। उससे चैथे दिन मक्खू मंडी में कार्यक्रम था। तीन दिन खूब रिहर्सल चलती रही थी।
चैथे दिन यानी कार्यक्रम वाले दिन जब रात को दस बजे मक्खू मंडी पहुँचे तो प्रबंधकों ने सूचित किया कि प्रोग्राम कैंसिल हो गया है। चमकीले ने बकाया रहते पैसे लेने के लिए ढक्कन को भेजा था। प्रबंधकों ने पैसे देने से कोरा जवाब दे दिया, “जब प्रोग्राम ही कैंसिल हो गया, फिर पैसे किस बात के?“
ढक्कन ने अपनी जेब में से एग्रीमेंट फार्म निकालकर दिखाया था, “ये देखो, इसमें साफ लिखा है कि प्रोग्राम हो या न हो, कलाकार पेमेंट लेने का हक़दार है।“
प्रबंधकों ने जब कोई बात नहीं मानी तो ढक्कन ने धमकी दी थी, “ठीक है फिर हम थाने जाते हैं अभी। रात वहीं बिताएँगे और सुबह तुम्हें बुलाकर बात करेंगे।“
हंगामा बढ़ता देख कर एक-दो सयाने लोग बीच में पड़े और उन्होंने ढक्कन को दो हज़ार रुपये का खर्चा दिलवा दिया। वापस लौटते हुए रास्ते में रोटी-पानी छकने के लिए रुके तो चमकीले को उदास देख अमरजोत बोली थी, “शायद मैं तुम्हारे लिए अपशगुन हूँ जो पहला ही प्रोग्राम कैंसिल हो गया।“
चमकीला, अमरजोत के चेहरे को ग़ौर से देखते हुए बोला था, “नहीं बीबी। यह सब कुछ तो इस पेशे का और ज़िन्दगी का हिस्सा है। फिर क्या हुआ अगर प्रोग्राम कैंसिल हो गया? हमें इतने प्रोग्राम मिलेंगे कि हम कर नहीं सकेंगे। हम खुद मना किया करेंगे।“
चमकीले का यह उŸार सुनकर अमरजोत के चेहरे पर रौनक आ गई थी।
अगला कार्यक्रम पंद्रह-बीस दिन बाद था। अमरजोत को इस बात का इल्म था। वह चमकीले से बोली, “मैं फरीदकोट चली जाऊँ? यहाँ खाली बैठी क्या करूँगी?“
चमकीले के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई थी। उसे डर था कि यदि अमरजोत एकबार चली गई तो उसे वापस लाना बहुत कठिन होगा। ख़ास कर पहला ही प्रोग्राम कैंसिल हो जाने के कारण यह भी हो सकता था कि फरीदकोट जाकर वह किसी दूसरे के साथ जोड़ी बना ले। चमकीला किसी कीमत पर उसको जाने नहीं देना चाहता था। परंतु वहाँ रखने की भी उसके पास कोई ठोस वजह नहीं थी। ऐन मौके पर चमकीले ने अपना पैंतरा बदला था, “नहीं-नहीं... हम रिकार्डिंग वाले गीतों की रिहर्सल करते हैं। तुम जाकर क्या करोगी?“
अमरजोत को यह ज्ञान नहीं था कि चमकीला उसको रोकने के लिए बहाना बना रहा था। अमरजोत ने चमकीले को रुकने की रजामंदी प्रकट करते हुए कहा था, “अच्छा तो हम भाई-बहन को रहने के लिए एक कमरा किराये पर ले दो।“
चमकीले ने तुरंत टिक्की को कमरा तलाशने के लिए भेज दिया। टिक्की पूछताछ करता अशोकी स्कूटर वाले के पास चला गया था। संयोग से वहाँ कलाकार बलदेव सिंह सबर बैठा था और उसके पास लाजपत नगर में एक कमरा खाली था। टिक्की को उसने वह कमरा दिखा दिया।
टिक्की वापस आकर अमरजोत, पप्पू और चमकीले को कमरा दिखाने ले गया था। कमरा दिखाकर चमकीले ने अमरजोत से पूछा था, “आपको कमरा पसंद है?“
अमरजोत ने कमरे में चारों ओर नज़र घुमाई थी, “कमरा तो पसंद है, पर आप इनसे किराये की बात खोल लो।“
“हाँ जी, सबर साहब। बोलो।“ चमकीले ने मकान मालिक से पूछा था।
“साढ़े पाँच सौ रुपया महीना लूँगा जी।“
सबर की बात सुनकर अमरजोत ने कहा, “हम तो पाँच सौ देंगे।“
“ठीक है जी, आप पाँच सौ दे देना।“ सबर सहजता से मान गया था।
चमकीले ने झट पाँच सौ रुपये निकालकर मकान मालिक को पकड़ा दिए थे।
टिक्की को ढोलकी-बाजे कमरे में लाने के लिए कहकर चमकीले ने दरी बिछवाई और उस पर बैठकर अमरजोत से संबोधित हुआ था, “लाओ जी, आपको गीत लिखकर दूँ।“
टिक्की के आने पर रिहर्सल शुरू हो गई थी। इस तरह करीब दो ढाई हफ्ते रिकार्डिंग वाले गीतों की रिहर्सल चलती रही। एक दिन दफ्तर का क्लर्क कुलविंदर सिंह कुक्की दिल्ली से कंपनी वालों का पत्र लेकर रिहर्सल के समय आ गया। उस पत्र में चमकीले को अगली रिकार्डिंग के लिए तारीख़ दी हुइ थी। पत्र पढ़कर चमकीले ने पत्र अमरजोत के सामने रख दिया, “लो जी, आपके सिर पार्टी हो गई।“
पत्र पढ़कर अमरजोत खुशी में नाच उठी, बोली, “बोलो क्या खाओगे?“
चमकीला मीट खाने और शराब पीने का शौकीन था। उसने जेब में से पैसे निकालकर पप्पू को दिए थे, “ले पप्पू, बोतल और एक किलो मीट ले आ।“
टिक्की को चमकीले ने अपने कमरे से स्टोव, पतीला, नमक, मिर्च, हल्दी, मीट मसाला, लहसुन, अदरक और प्याज लेने भेज दिया। टिक्की के आने पर अमरजोत प्याज छीलने लग गई थी। तभी पप्पू बोतल और मीट लेकर आ गया था। अमरजोत मीट बनाने में व्यस्त हो गई थी। तीनों जने दारू पीने लगे थे। काफ़ी देर बाद खा-पीकर खुशी खुशी चमकीला और टिक्की वहाँ से चले गए थे। टिक्की अपने कमरे की ओर चला गया और चमकीला अपने गाँव दुग्गरी की ओर।
अगले दिन चमकीला और अमरजोत ने दो घंटे रिहर्सल की थी क्योंकि उससे एक दिन बाद नकोदर के पास बिल्ली वडैच में प्रोग्राम करने जाना था।
बिल्ली वडै़च प्रोग्राम पर लोगों की बहुत भारी भीड़ एकत्र हुई थी। चमकीला, अमरजोत को लेकर स्टेज पर गया तो अगली कतार में बैठा एक आदमी ऊँची आवाज़ में बोला था, “बल्ले आए चमकीले, पुर्जा बहुत बढ़िया निकालकर लाया है।“
पहली बार अमर सिंह चमकीला और अमरजोत स्टेज पर जलवागर हुए तो देखने-सुनने वाले वाह-वाह कर उठे थे। अमरजोत को इस पहले कार्यक्रम से ही अहसास हो गया था कि लोगों ने उनकी जोड़ी को कुबूल कर लिया था। इसके पश्चात चमकीले और अमरजोत पर तो कार्यक्रमों की बारिश ही होने लग पड़ी थी।
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