एक बार एक लड़का और उसका पिता अखाड़ा बुक करवाने आए। नौध सिंह तब बुकिंग क्लर्क हुआ करता था। चमकीला भी हल्के कोकाकाला रंग की धूप वाली ऐनक लगाए उस समय दफ्तर में बैठा था। लड़के के पिता ने रेट पूछा तो क्लर्क ने पच्चीस सौ रुपये बताया।
लड़के का पिता मोलभाव करने लगा, “ज्यादा है। यार कुछ कम करो।“
चमकीले ने कह दिया था, “चलो आप तेईस सौ दे दो।“
“नहीं, यह भी ज्यादा हैं। हम तो दो हज़ार दे सकते हैं।“
“ना जी, दो हज़ार में तो हम नहीं कर सकते।“ क्लर्क ने कोरा जवाब दे दिया था।
“चल काका, और गाने वाले क्या कम हैं? चमकीले को क्या सोने के पŸार चढ़े हुए हैं? हम किसी दूसरे को बुक कर लेते हैं।“ लड़के का पिता बोला था।
“नहीं बापू, चमकीला, चमकीला ही है।“ लड़के ने जिरह की थी।
“मैं लफ्फड़ मारूँ, उठकर चल पड़। मेरे पास बर्बाद करने को पैसे नहीं हैं।“ कहकर वह पिता-पुत्र उठकर चल दिए थे।
बाहर आकर लड़के ने अपने पिता से सलाह की कि मैं कोशिश करके देखता हूँ अगर दो हज़ार में मान जाएँ। बापू बाहर खड़ा रहा और लड़का अंदर चला गया।
“भाई मेरा बापू तुम्हें दो हज़ार दे देगा। तुम प्रोग्राम बुक कर लो। बाकी का तीन सौ मैं तुम्हें अपने शगुन में इकट्ठे हुए पैसों में से दे जाऊँगा। मेरी बहुत पुरानी हसरत थी कि मेरे विवाह पर चमकीला गाए।“
यह सुनकर चमकीले की आँखें भर आई थीं और उसने कह दिया था, “कोई बात नहीं। अपने बापू को बुलाकर प्रोग्राम बुक करवा देे।“
लड़के ने अपने बापू को आवाज़ लगाकर अंदर बुला लिया था, “बापू आ जा, मान गए।“
दो हज़ार में बापू के सामने प्रोग्राम बुक कर लिया गया। साई के पाँच सौ रुपये लेने थे। उनके पास मुश्किल से दो सौ रुपये निकले। चमकीले ने अपने क्लर्क को सौ रुपये एडवांस में दर्ज़ करने के लिए कहकर सौ रुपया उन्हें वापस कर दिया था, “ये लो। आपने घर वापस जाने के लिए बस का किराया भी देना होगा। अब गाँव पहुँचकर एक काम करो कि अपने आसपास के गाँव में ढंग से शोर मचा दो कि फलानी तारीख को चमकीला गाने आएगा। फिर हम जाने, हमारा काम जाने।“
बाप-बेटा खुशी-खुशी लौट गए थे। चमकीला जब उनके यहाँ प्रोग्राम करने गया तो एक बड़े-से स्टेज पर चमकीले ने गाया था। चारों ओर लोगों की असंख्य भीड़ थी। उस दिन चमकीले को इनामों का सौलह सौ हज़ार रुपया बना था। प्रोग्राम के बाद चमकीले ने इक्यावन सौ रुपया विवाह वाले लड़के के बापू को पकड़ाते हुए कहा था, “बापू जी, मेरी तरफ से यह आपके बेटे को शगुन है।“
चमकीले ने अपने प्रोग्राम के पैसे भी नहीं लिए थे और चमकीले से पैसे पकड़ते लड़के के बापू की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए थे, “सच में, चमकीला चमकीला ही है।“
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