दफ्तर लिए को अभी आठ-नौ महीने ही हुए थे और चमकीले को ज़रा भी अपनी निजी ज़िन्दगी के लिए फुर्सत नहीं मिलती थी। कार्यक्रमों की भागदौड़ में उससे न तो दुग्गरी अपनी परिवार के पास जाया जाता था और न ही अपने दफ्तर का तीन महीने से किराया दिया गया था। दरअसल उसको ये छोटे-मोटे काम याद ही नहीं रहते थे।
गुरबचन सिंह वैद का लड़का तरसेम कलाकारों से किराया लेने एक दिन मार्किट में आ गया। किराया इकट्ठा करता करता वह चमकीले के दफ्तर में पास एक अन्य कलाकार के दफ्तर में बैठा था। वहाँ पंद्रह-बीस और लोग बैठे हुए थे। शराब का दौर चल रहा था। कलाकारों की बातें चली तो चमकीले का जिक्र आ गया, “बाकी तो सब ठंडे ही हैं, पर चमकीला तो अति कर रहा है। रोज़ ही प्रोग्राम पर जाया रहता है।“
इस पर तरसेम को याद आया कि चमकीले ने उसको दफ्तर का पिछले तीन महीने से किराया नहीं दिया था। तरसेम ने गाली देते हुए कहा था, “चमकीले को बुलाकर लाओ।“
एक आदमी चमकीले को खोजने चला गया था। संयोग से चमकीला अभी एक प्रोग्राम करके लौटा ही था। तरसेम का संदेशा मिलते ही वह तरसेम के पास चैबारे में आ गया।
चमकीले के अंदर घुसते ही तरसेम ने उसको गंदी-गंदी गालियाँ देनी शुरू कर दी और उठकर चमकीले को थप्पड़ दे मारा जिसे हाथ से रोकते हुए चमकीला सफाई पेश करने लगा था, “तरसेम भाई, मैं कौन सा तेरे से भागा हूँ। बस, टाइम ही नहीं मिला। मैं तेरा देनदार हूँ। ये उठा किराया।“
चमकीले ने अपनी सारी जेब खाली कर दी थी। मेज पर पाँच, दस और बीस रुपये के नोट बिखरे पड़े थे।
नोट गिनकर तरसेम ने फिर गाली बकी थी, “ये तो पाँच सौ ही हैं।“
“आज भाई इतने ही हैं। बाकी मैं कल को तुझे तेरे घर आकर दे जाऊँगा।“ चमकीला हाथ जोड़े खड़ा था।
चमकीले की बेचारी सी सूरत देखकर तरसेम के जर्मन वाले दोस्त जगिंदर बाठ ने समझाया था, “चल छोड़ तरसेम, उसने कहा न, वह खुद कल आकर दे जाएगा। चमकीला कलाकार बंदा है। तू क्यों उसकी इतने लोगों के बीच बेइज्ज़ती करता है।“
वहीं बैठे एक-दो और लोग चमकीले के हक़ में बोल उठे थे। चमकीले को वहाँ बिठाकर उन्होंने गीत सुनाने की फरमाइश की थी। चमकीले ने ‘सुच्चा सूरमा’ गीत गाया तो सुनते ही तरसेम को ‘धीआं भैणां लुट्टे वे ते काहदा सूरमा’ पंक्ति सुनकर अपनी गलती का अहसास हो गया था। गीत खत्म होने पर उसने चमकीले को गले से लगाकर उससे माफ़ी मांगी थी, “खाई-पी में पता नहीं चला चमकीले, यूँ ही अबा-तबा बोल बैठा। तू गुस्सा न करना।“
“नहीं, गलती मेरी है। मुझे समय से किराया देना चाहिए था। आप बख़्तावर हो, हम गरीबों ने आपसे कैसा गुस्सा करना है?“ कहकर चमकीला चला गया था।
बख़्तावर चमकीले का प्रिय शब्द था। लेकिन उसने अपने सिर्फ़ दो गीतों में ही इसका प्रयोग किया था। एक था, ‘पट्टियां लफंगियां ने बख़्तावरां दीआं जाईयां’ और दूसरे गीत की लाइन थी, ‘साडे बख़्तावरां ने हक खोह लए खाली रहि गए गरीबां दे।’
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