Sunday, May 27, 2018

15-लव मैरिज

ज़िला जालंधर के गाँव उघ्घी चिट्टी में प्रोग्राम करने के बाद चमकीला अमरजोत को लेकर दिल्ली रिकार्डिंग के लिए चला गया था। तैयारी उन्होंने पहले ही पूरी की हुई थी। दिल्ली जब स्टुडियो में पहुँचे तो अमरजोत को देखकर ज़हीर अहमद ने पहचान लिया था, “ये लड़की तो कुलदीप माणक के साथ हमारे पास पहले भी रिकार्डिंग करवाकर गई थी।“

“हाँ जी।“ अमरजोत ने उŸार दिया था।

रिकार्डिस्ट ज़हीर अहमद, चमकीले को एक तरफ ले जाकर पूछने लगा, “ये आप का नया सैट कितने दिन तक रहेगा? पहले बताइये, फिर हम रिकार्डिंग के बारे में सोचेंगे।“

“बस जी, करीब पंद्रह दिन तक ये सैट ईंट जैसा पक्का हो जाएगा। फिर हथौड़ी से तोड़े भी नहीं टूटेगा किसी से।“ चमकीले ने रिकार्डिंग करवाने के लालच में शेखी मार दी थी।

“अच्छी बात है, आप होटल में जाकर आराम करो। आप की रिकार्डिंग कल करेंगे।“ ज़हीर अहमद ने चमकीले को उस दिन मीठी गोली देकर लौटा दिया था।

होटल में आकर चमकीला काफ़ी देर तक अमरजोत के साथ बातें करता रहा था। खुद थकी हुई होने के कारण अमरजोत ने चमकीले से ऊबकर कहा, “अमर, अब तुम जाकर आराम कर लो। कल हमारी रिकार्डिंग है।“

पहली बार अमरजोत के मुँह से अपना नाम सुनकर चमकीले के कानों में शहनाइयाँ बजने लग पड़ी थीं। रातभर वह अमरजोत के साथ प्रेम-पींगें लेता सपने देखता रहा था।

अगले दिन रिकार्डिंग के समय पूरे आठ गीत रिकार्ड हुए थे। जो ‘मेरा विआह करवाउण नूं जी करदै’ और ‘मितरा मैं खंड बण गई’ शीर्षक से अलग अलग ई.पी. बनकर निकलने थे। ‘मेरा विआह करवाउण नूं जी करदै’ का संगीत चरनजीत आहूजा ने दिया था और ‘मितरा, मैं खंड बण गई’ का एस.एन. गुलाई द्वारा संगीतबद्ध हुआ था।

जब ये गीत बाज़ार में आए तो चमकीले के पहले गीतों को भी मात दे गए थे। हर तरफ ‘चमकीला-चमकीला’ होने लगा था। चमकीले को धड़ाधड़ प्रोग्राम मिलने लगे थे। इस वक्त कलाकारों ने चमकीले के साथ खार खानी शुरू कर दी थी। कुछ कलाकार उसकी अमरजोत के साथ जोड़ी को तुड़वाने की योजनाएँ बनाने लग पड़े थे।

एक दिन अमरजोत के पिता ने अमरजोत को करतार रमले के साथ सैट बनाने की पेशकश की थी, “बेटी, रमला बहुत समय से गाता आ रहा है और स्थापित नाम है। और फिर, लड़का है भी अपने फरीदकोट का।“

यह सुनकर पहले तो अमरजोत चुप रही थी, परंतु फिर उसने अपने पिता को टालने के लिए कह दिया था, “कोई बात नहीं डैडी जी, मैं सोचूँगी।“

असल बात तो यह थी कि अमरजोत चमकीले को प्यार करने लगी थी और उसका साथ नहीं छोड़ना चाहती थी। और भी बहुत सारे कलाकारों द्वारा अमरजोत के साथ जोड़ी बनाने के प्रस्ताव आने लग पड़े थे। अमरजोत का चमकीले की ओर अनावश्यक झुकाव अमरजोत के परिवार से छिपा नहीं था। लेकिन अमरजोत के परिवार को अमरजोत की गायकी पर होने वाली कमाई का भी लालच था। इसलिए वे नहीं चाहते थे कि अमरजोत किसी के साथ जल्द विवाह करवाकर सैटिल हो जाए।

चमकीले के साथ गाते हुए बहुत सारे कार्यक्रम अमरजोत के हुस्न और नखरे के कारण भी बुक हुआ करते थे। पर चर्चा में सिर्फ़ चमकीला-चमकीला ही होता था। इस बात को लेकर भी अमरजोत का परिवार खफ़ा था। चमकीले से अमरजोत की जोड़ी तुड़वाकर किसी दूसरे के साथ जोड़ी बनवाने के पीछे उनका उद्देश्य अमरजोत का एक अलग नाम पैदा करना भी था।

अमरजोत पर उसके परिवार की ओर से चमकीले से अलग होने के लिए दबाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। उधर जितना कोई अमरजोत को चमकीले से दूर करने की कोशिश करता था, उतना ही वह चमकीले के करीब होती जाती थी। चमकीले की ओर वह दिनोंदिन खिंची जा रही थी।

एक दिन अमरजोत और उसके भाई पप्पू की रमले गायक के साथ जोड़ी बनवाने को लेकर बहुत बहस हुई थी। अमरजोत ने यह बात चमकीले के कान में डाल दी थी, “देखो अमर, अगर तुम मेरे साथ पक्के तौर पर जोड़ी बनाकर रखना चाहता है तो मेरे साथ विवाह करवा लो। नहीं तो मेरे घरवाले मेरा किसी दूसरे के साथ विवाह कर देंगे या अपना सैट तुड़वाकर किसी दूसरेे के साथ मेरी जोड़ी बनवा देंगे।“

“पर मैं तो विवाहित हूँ। यह बात तुम भी जानती हो।“ चमकीला अपनी दाढ़ी में खाज करने लगा था।

“मुझे कुछ नहीं मालूम। और न ही मैं कुछ जानना चाहती हूँ। मैं तो सिर्फ़ यही जानती हूँ कि अगर तुमने मेरे साथ जल्दी विवाह नहीं करवाया तो फिर गाते रहना ‘रोंदी कुरलांदी नूं कोई लै चलिया मुकलावे...’।

“अच्छा, मामला यहाँ तक पहुँचा हुआ है? ठीक है, मैं सोचकर बताता हूँ। ‘होर कोई तैनूं जे विआह के लै गिया, चमकीले दा जिउणा जग ते ना रहि गिया। चल मेरे नाल चार लै लइये लावां, जिŸाी पिआर दी रहे बाजी। नी चिŸा करदे, चिŸा करदे मुंडे दा राजी...’ ये तुकें गाते हुए मसखरी करके चमकीले ने पीछा छुड़ा लिया था।

अजीब-सी दुविधा और धार्मिक संकट में डाल दिया था अमरजोत ने चमकीले को। दिन रात मानसिक परेशानियों के साथ जूझता हुआ वह इसी द्वंद में उलझा रहा था। वह इस बारे में न किसी से बात कर सकता था और न ही इस समस्या का खुद कोई हल निकाल सकता था। चमकीले का खाना-पीना दूभर हो गया था और ऐसी स्थिति में कोई नया गीत लिखना तो संभव ही नहीं था। चमकीला न तो परिवार को छोड़ सकता था, न ही खुल्लम खुल्ला अमरजोत को अपना सकता था। फिर, अमरजोत और उसके रुतबे में भी तो अंतर था। अमरजोत कुआंरी थी और वह विवाहित था। उसने जी-जान लगाकर अमरजोत पर मेहनत की थी और उसे रियाज़ करवाया था। अब यदि अमरजोत किसी दूसरे के साथ गाने लग गई तो उसकी सारी मेहनत पर ही पानी फिर जाने वाला था। अब तक के जीवन में चमकीले ने खुद भी महज़ संघर्ष ही किया था। सफलता के ताजे़ खुले द्वार उसको बंद होते नज़र आ रहे थे। चमकीला तो अमरजोत, परिवार और गायकी की तिकोनी चक्की में बुरी तरह पिस रहा था। इस कशमकश और कार्यक्रमों की भरमार के कारण महीना आँख झपकते ही बीत गया था।

फिर वो दिन भी आ गया जब चमकीले को इधर या उधर में से एक तरफ होना ही था। इस बीते समय के दौरान चमकीला, अमरजोत पर बुरी तरह फिदा हो चुका था। चमकीले ने अपना दृढ़ मन बनाकर एक दिन रियाज़ करते समय अमरजोत के साथ खुद ही बात की। 

“सुनो, मैं तुम्हारे साथ विवाह करवाने के लिए राज़ी हूँ। पर तुझे पता है यह काम इतना आसान नहीं। बहुत मुश्किलें आएँगी हमें, सोच ले।“

अमरजोत ने चमकीले की आँखों में आँखें डाल दी थीं, “अपना दायाँ हाथ आगे कर, अमर।“

चमकीले ने अपनी दायीं हथेली फैलाकर अमरजोत के आगे कर दी थी। अमरजोत ने अपना दायाँ हाथ उसक पर उलटा करके रख दिया था, “मैं तो कभी से सोचे बैठी हूँ। अब तो जिऊँगी भी तुम्हारे साथ और मरूँगी भी तुम्हारे साथ। मैं तो चाहती हूँ, तू मुझ अकेली को कहीं दूर ऐसी जगह ले जाए, जहाँ तेरे और मेरे सिवा कोई और न हो।“

अमरजोत की आँखों में ठाठें मारता प्रेम का सागर देखकर चमकीले ने हरमोनियम की दूसरी तरफ पालथी मारकर बैठी अमरजोत को घुटनों के बल होकर बाजे के ऊपर से बांहों में भर लिया था, “मैं तो सोचे बैठा था कि इरादा बदल गया, इसलिए राखी बांधने के लिए बांह आगे करवाई है।“

“अब जो करना है, जल्दी करो। देखो, कही नाव में पत्थर न पड़ जाएँ। इधर घर में तो कब का खतरे का भौंपू बज चुका है मिŸारा।“

“हाँ, तेरे भाई पप्पू की बातों से तो मुझे दाल में कुछ काला लगता था।“

“देखना, यह न हो, कहीं दाल ही काली हो जाए।“

“ले, मैंने तो कभी मीट काला नहीं होने दिया। दाल काली कैसे होने दूँगा? तू चिंता न कर। यार होंगे, मिलेंगे खुद, चिŸा को ठिकाने रखें। मैं आज ही प्रबंध करता हूँ।“ कहकर चमकीला अपने दफ्तर में आ गया था।

संदेशा भेजकर चमकीले ने टिक्की को दफ्तर में बुला लिया था। जब टिक्की आया तो दफ्तर में कुछ लोग बैठे थे। चमकीला टिक्की को एक तरफ ले गया था, “मैंने अमरजोत के साथ विवाह करवाने का फैसला कर लिया है। तू मेरा विवाह करवा दे।“

“करूँ फिर उसके घरवालों के साथ बात?“

“अमरजोत कहती है कि ‘मेरा विआह कराउण नूं जी करदै, बेबे न मानती मेरी’। मूर्ख, मैं तुझे विवाह करवाने के लिए कह रहा हूँ। हमारा रिश्ता तुड़वाने को नहीं। अमरजोत के घरवालों को ज़रा सी भी भनक लग गई तो वे अमरजोत को उसी समय फरीदकोट ले जाएँगे। पप्पू फरीदकोट गया हुआ है। दो-तीन दिन तो लौटने से रहा। हमें यह काम अभी फुर्ती से करना पड़ेगा। उसकी गै़रहाज़िरी में।“ चमकीले ने टिक्की के कान में अपनी तीव्र इच्छा फूंकी थी।

“वो तो ठीक है, पर तेरे घरवाले मान जाएँगे? तू तो ब्याहा हुआ है।“ टिक्की ने अपना शक प्रकट किया था।

“वह मेरी जिम्मेदारी। मैं खुद अपने घरवालों से निबट लूँगा। तुझे किस बात की चिंता? और फिर मेरा विवाह नहीं हुआ था। मेरे बड़े भाई की मौत हो गई थी और उसकी पत्नी मेरे सिर पर बिरादरी ने रख दी थी। मुझे मजबूरी में चादर डालनी पड़ी थी। हमारी आपस में नहीं बनती। तुझे तो मालूम ही है कि मैं कितने कितने दिन घर नहीं जाता। फिर वो विवाह कैसा? अमरजोत के घरवालों को भी ज़रूरत पड़ी तो हम यही बताएँगे। तू बस मेरे और अमरजोत के विवाह का इंतज़ाम कर दे।“

“चल बता, मैं क्या कर सकता हूँ?“

“देख, यहाँ लुधियाना में विवाह का पंगा लिया तो उन्नीस-इक्कीस होने की संभावना ज्यादा है। तू चोरी-छिपे अपने फगवाड़े वाले घर में हमारा ‘आनंद कारज’ पढ़वा दे। वहाँ किसी को भी भनक नहीं लगेगी। किराया मुझसे ले जा और सारा प्रबंध आज ही कर ले। हमने सुबह नीम को बताशे लगा देने हैं।“ चमकीले ने पैसे निकालकर टिक्की को पकड़ा दिए थे। शाम का समय था। टिक्की वहाँ से सीधा बस-अड्डे चला गया और फगवाड़े वाली बस में चढ़ गया।

फगवाड़े बस अड्डे उतरकर टिक्की ने रिक्शा लिया और सब्ज़ीमंडी उतरकर स्पीकरों वाले अवतार फौजी को सारी कहानी जा बताई और सहयोग की मांग की। टिक्की अपने परिवार वालों के साथ इस मामले में बात करने से झिझकता था। अवतार फौजी ने टिक्की को पहले अधिया पिलाकर तैयार किया था। फिर रात के नौ बजे के करीब मोटर साइकिल पर बिठाकर उसके घर सुखचैन नगर टिक्की के संग पहुँच गया था। टिक्की के माता-पिता के साथ फौजी ने ही बात की थी। पहले तो सुनकर वे डर ही गए थे, “देखना, कहीं बखेड़ा ही न खड़ा कर देना।“

“कुछ नहीं होता। बस सारी दस-पंद्रह मिनट की बात है। लावां(फेरे) करवाकर काम निपटा देंगे।“ फौजी के समझाने पर टिक्की के परिवार ने रज़ामंदी दे दी थी।

अवतार फौजी अपने मोटर साइकिल पर टिक्की को स्टेशन छोड़ने चल दिया था। रास्ते में टिक्की ने अपनी बुआ के लड़के जोगिंदर सिंह, बिजली फोटोग्राफर को अगले दिन नौ बजे का समय दे दिया था - तस्वीरें खींचने के लिए।

फौजी टिक्की को रात में अपने मोटर साइकिल पर रेलवे स्टेशन छोड़ आया था। रात के बारह बजे रेल पकड़कर टिक्की लुधियाने आ गया था। उसने चमकीले को सारी बात बताई थी। चमकीले को चैन नहीं आ रहा था। वह चारपाई पर बैठा अगले दिन की योजना बनाता रहा, “अच्छा टिक्की, फिर हम अमरजोत को ले जाने के लिए गाड़ी किसकी करेंगे?... उसके लिए विवाह वाले सूट भी लेने पड़ेंगे। सेहरा वैगरह भी लेना पड़ेगा।“

“लोकल बस अड्डे से प्रेम की टैक्सी कर लेंगे। अपना यार है वो। बाकी सामान फगवाड़े पहुँचकर ले लेंगे। अब तू सो जा और मुझे भी सोने दे।“ टिक्की दारू के नशे के कारण सुस्ताया पड़ा था।

चमकीले के लिए सुबह मुश्किल से हुई थी। अमरजोत को संदेश भेजकर सारी जुगत चमकीले ने पहली ही समझा रखी थी। 24 मई 1983 को कार लेकर वह अमरजोत को लेने गए तो मकान मालिक दरवाज़े पर खड़ा था। उसने अमरजोत से सहज ही पूछ लिया था, “कहीं कोई खास ही प्रोग्राम लगता है आज?“

“हाँ जी, खास ही है।“ अमरजोत ने वहाँ से खिसकने में फुर्ती दिखाई थी।

मकान मालिक ने यही समझा था कि अमरजोत कोई कार्यक्रम के लिए गई थी। साढ़े नौ बजे फगवाड़े के बांसों वाले बाज़ार में पहुँचकर अमरजोत के लिए चमकीले ने दो रेडीमेड सूट, सिंधूर और अन्य सामान खरीदा था। बाकी आवश्यक बंदोबस्त टिक्की के घरवालों ने कर रखे थे।

नज़दीक के गुरद्वारे से महाराज की बीड़ और सुक्खा सिंह ग्रंथी को फौजी और टिक्की का पिता ले आए थे। राह में आते समय ही फौजी ने ग्रंथी को समझा दिया था कि पंद्रह बीस मिनट से अधिक समय न लगाए। ग्रंथी ने घर आते ही अपनी कार्रवाई आरंभ कर दी थी। करीब पंद्रह मिनट में सारी रस्म समाप्त हो गई थी। अमरजोत के पिता वाले फर्ज़ टिक्की के पिता रतन सिंह ने निभा दिए थे। ‘आनंद कारज’ के बाद फौजी ने कहा था कि अब विवाह वाली जोड़ी से एक एक धार्मिक गीत सुना जाए। जगिंदर सिंह बिजली ने फोटोग्राफी की थी और उसने उसी तरह गले में डालकर ढोलकी बजाई थी और अमरजोत ने गीत गाया था, “पता नहीं की बाटे विच घोल के पिला गया।“

इसके बाद चमकीले ने गीत पेश किया था, “दशमेश पिता सिक्खी दा महिल बणा चलिया।“ श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी की बीड़ गुरद्वारे छोड़कर लंगर बरताया गया था। अमरजोत की मांग में चमकीले ने बालों में लगाने वाली सुई से सिंधूर डाला था और जल्दबाजी में आनंद कारज भी पगड़ी बांधने की बजाय सिर पर रूमाल ले कर करवाए थे।

दो दिन तक अमरजोत और चमकीला वहीं रहे थे। तीसरे दिन चमकीले ने अमरजोत से एक चिट्ठी लिखवाई जिसमें लिखा था कि मैंने चमकीले के साथ विवाह करवा लिया है और हम वैष्णो देवी में हैं।

यह चिट्ठी तीसरे दिन ही चमकीले ने अपने चेले बलजिंदर संगीले के हाथ भेजकर उससे कहा था कि अमरजोत के किराये वाले कमरे के दरवाजे़ के बाहर गांेद लगाकर चिपका दे।

जब अमरजोत के भाई ने आकर वह चिट्ठी पढ़ी थी तो अपने पिता से कहा था, “जिस बात का डर था, वही हो गई। अब उन्हें वैष्णो देवी में कहाँ खोजेंगे?“

अमरजोत के परिवार वाले भड़के तो अवश्य, पर शांत रहे। 29 मई को चमकीले का खन्ने के पास कालेवाल गाँव में प्रोग्राम बुक था। जब चमकीला और अमरजोत दफ्तर पहुँचे तो अमरजोत ने लाल चूड़ा पहन रखा था जिसे देखकर पप्पू लाल-पीला हो गया था, “बब्बी, तूने यह अच्छा नहीं किया।“

अमरजोत ने अपने भाई को डांटते हुए कहा, “तू चूप होकर बैठ जा, पप्पू। जो मुझे ठीक लगा, मैंने कर लिया।“

पप्पू चमकीले के साथ लड़ने-झगड़ने लगा था। चमकीले ने एक वाक्य में बात खत्म कर दी थी, “जब मियां-बीवी राज़ी, तो क्या करेगा काज़ी।“

शाम तक लुधियाना के सारे कलाकारों में अमरजोत और चमकीले के विवाह की ख़बर जंगल की आग की तरह फैल गई थी। चमकीले की पहली पत्नी को जब इस बारे में पता चला तो उसके भाई लाठियाँ लेकर चमकीले को पीटने दफ्तर में आ पहुँचे। दफ्तर के क्लर्क ने विवाह की ख़बर का खंडन करके उन्हें टाल दिया और चमकीले को सूचित कर दिया था।

चमकीला अमरजोत को लेकर फगवाड़े टिक्की के घर चला गया था। कुछ दिन उन्होंने कार्यक्रम भी नहीं किए थे। फिर चमकीला अमरजोत को लेकर किराये के कमरे बदलता रहा ओर अपने ससुराल वालों को उसने काफ़ी दिनों तक इसी भ्रम में रखा था कि अमरजोत के साथ वह सिर्फ़ गाता था। उनका विवाह नहीं हुआ था। फिर एक दिन जब सारा भेद खुल गया तो चमकीले की पहली पत्नी गुरमेल कौर अपने भाई शिंदर (सुखविंदर सिंह) और उसके दोस्तों को लेकर चमकीले के दफ्तर आ धमकी थी। हाथों में नंगी किरपाणें लिए खड़े वे साजिन्दों और क्लर्क के साथ लड़ पड़े थे, “दुक्कियों-तिक्कियो(कुक्की और टिक्की), चमकीले को निकालो बाहर... कहाँ है वो? आज हम उसे काट देंगे।“

“चमकीला राजस्थान में प्रोग्राम करने गया हुआ है। जब वापस आया तो आपके पास भेज देंगे।“ साजिन्दों ने एक बार उन्हें टालकर वापस भेज दिया था।

चमकीला डर के मारे दफ्तर नहीं आता था और अमरजोत के साथ कमरे बदल-बदलकर रहे जाता था। कभी वे दोनों हैथोवाल में कमरा किराये पर लेकर रहते, कभी घुमियार मंडी और कभी भारत नगर चैक के पास। जब करीब महीना भर यूँ ही गुज़र गया तो चमकीले के साले और उसकी पत्नी फिर गंडासे-किरपाणें लेकर चमकीले को खोजने आ गए और उनकी साजिन्दों के साथ झड़प हो गई थी। मामला पुलिस थाने तक पहुँच गया था। चमकीले ने पुलिस को पैसे खिलाकर राज़ीनामा करवा लिया था। पहली पत्नी की शर्तों के अनुसार चमकीला ने हर महीने उसे खर्चा देना मंजूर कर अपना पीछा छुड़वाया था।

उधर अमरजोत के परिवार को भी पैसों का लालच था। उन्होंने भी सोचा कि अब जब सब कुछ हो गया है तो बिगाड़कर रखने में कोई लाभ नहीं था। उन्होंने भी चमकीले और अमरजोत के साथ मिलकर रहना मंजूर कर लिया था। फिर, आहिस्ता-आहिस्ता कुछ अंतराल के बाद चमकीले के अमरजोत के साथ हुए विवाह को उसकी पहली पत्नी के परिवार ने भी स्वीकार कर लिया था। चमकीले ने अपनी पहली पत्नी को दलील दी थी कि मैंने किसी न किसी लड़की के साथ तो गाना ही है। अमरजोत के साथ न गाऊँगा तो किसी दूसरी के साथ गाने लगूँगा। चमकीले की घरवाली समझ गई थी कि चमकीला टलने वाला नहीं था। उसको खर्चे से मतलब था, जो चमकीला ज़रूरत से भी ज्यादा दिए जा रहा था।

अमरजोत के भाई बलदेव सिंह ने अपने मकान के पास जमालपुर में चमकीले को मकान ले दिया था। चमकीले ने पचपन हज़ार प्रति किल्ले के हिसाब से साढ़े पाँच किल्ले सŸाोवाल में ज़मीन खरीद कर एक मकान बनवाया था जहाँ उसके भाई लश्कर, तारी, पिता और पहली पत्नी ने रहना शुरू कर दिया था। आहिस्ता-आहिस्ता अमरजोत और गुरमेल कौर ने एक दूसरे को कुबूल कर यिा था। बेशक रिश्ता तो उनके बीच सौतन वाला ही था लेकिन वह एक-दूजी के साथ लड़ाई-झगड़ा नहीं करती थीं। कभी कभार वे इकट्ठी दुग्गरी या सŸाोवाल में रह लेती थीं।

पहली पत्नी से तलाक लिए बिना सरेआम चमकीला अपनी दूसरी पत्नी अमरजोत के साथ रहता था। चमकीले को न हिंदू मैरिज़ एक्ट की परवाह थी और न ही दुनिया की। वह अमरजोत के साथ खुश था और उसका परिवार और ससुराल वाले उसके पैसे से प्रसन्न थे। लोग उसकी गायकी से आनंदित थे।

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